सुगम विवाह पद्धति पीडीऍफ़ फ्री डाउनलोड Sugam Vivah Paddhati PDF Free Download विवाह पद्धति गीता प्रेस गोरखपुर pdf download हिन्दू विवाह पद्धति इन हिंदी पीडीऍफ़ फ्री डाउनलोड
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“अगजाननपद्मार्क गजाननमहनशम् ।
अनेकदं तं भक्तानामेकदन्तमुपास्महे ॥
सुगम विवाह-पद्धतिः विवाह दिन से पूर्व तृतीय, षष्ठ’, नवम दिन को त्याग कर विवाह नक्षत्र में या शुभ दिन में स्व स्व गृह में कन्या वर के तैल हरिद्रारोपन अर्थात् हलदी हाथ आदि करावे ।
विवाह के दिन वा पहले दिन अपने-अपने घर में कन्यापिता और बरपिता स्त्रीसहित कन्या पुत्र के साथ मङ्गलस्नान करे । शुद्ध नवीन वस्त्र तिलक आभूषणादिसे विभूषित होके गणेश मातृका- पूजन – नान्दीश्राद्ध करे ।
सुगम विवाह पद्धति
श्रेष्ठ दिनमें सोलह या बारह या दश या अष्ट हस्त परि- माण का मण्डप’ चतुर्द्वार सहित बनाकर उसमें एक हाथकी चौकुंटी (चतुरस्र) वेदी पूर्वको नीची करती बनावे । उसको हलदी, गुलाल, गोधूम, चून आदि से सुशोभित करें ।
हवनवेदी के चारों तरफ काठकी चार खूंटी गाड़े, उन्हींके बाहर सूत लपेटे, एक २ दीवा (कच्चा बारुन्दड़ा) पास में धरे । कन्या, सिंह, तुला, ये संक्रान्ति होवें तो “ईशान” में प्रथम खूंटी रोपे ।
वृश्चिक, धन, मकर संक्रान्ति में “वायव्य” में प्रथम खूंटी रोपे । मीन, मेष, कुम्भ संक्रान्ति में “नैर्ऋत्य” में प्रथम खूंटी रोपे । वृष, मिथुन, कर्क संक्रांति में “अग्निकोण” में प्रथम खूंटी रोपे ।
एक काठके पाटेके ऊपर गणेश, षोडशमातृका, नवग्रह आदि स्थापन करे। ईशानकोणमें कलश स्थापन करे। रक्षार्थ घृत का दीपक रखे और अपने दक्षिण भागमें पूजा सामग्री रख लेवे ।
विवाह के समय कन्यापिता स्नान करके शुद्ध नवीन वस्त्र पहन कर उत्तराभिमुख होकर आसन पर बैठे । वर तो पूर्वाभिमुख बैठे ।
कुंकुम का तिलक कर अपने दक्षिण हस्त की अनामिका’ में सुवर्ण की अंगूठी पहन कर आचमन प्राणायाम कर “आनोभद्रा” आदि शान्तिपाठ करे ।
सुगम विवाह पद्धति Sugam Vivah Paddhati
विवाह सम्बन्धी कुछ आवश्यक बातें – सुगम विवाह पद्धति PDF डाउनलोड करने से पहले पढ़े
विवाह में आशौचादि की सम्भावना हो तो १० दिन’ प्रथम नान्दी श्राद्ध करना चाहिये ।
नान्दीश्राद्ध के बाद विवाह समाप्ति तक आशौच होने पर भी वर-वधू को और
उनके माता- पिता को आशौच नहीं होता ।
नान्दीश्राद्ध के प्रथम भी विवाह के लिये सामग्री तैयार होने पर आशौच प्राप्ति हो
विवाह के समय हवन के पूर्व अथवा मध्यमें वा प्रारम्भ में कन्या यदि
वधू और वरके माता को ‘रजोदर्शन की सम्भावना हो तो नान्दीश्राद्ध दश दिन प्रथम कर लेना चाहिये ।
नान्दीश्राद्ध के बाद रजोदर्शनजन्य दोष नहीं होता ।
नान्दीश्राद्ध के प्रथम रजोदर्शन होने पर “श्रीशान्ति” करके विवाह करना चाहिये ।
वर वधू की माता के रजस्वला अथवा सन्तान होने पर “श्रीशान्ति” करके विवाह हो सकता है ।
विवाहमें आशौच की सम्भावना हो, तो आशौच के प्रथम अन्न का संकल्प कर देना चाहिये ।
परि- वेषण असगोत्र के मनुष्यों को करना चाहिये ।
विवाह में वर-वधू का ग्रन्थिबन्धन कन्यादान के पहले ही शास्त्र विहित है,
दो कन्या का एक समय विवाह हो सकता है परन्तु एक साथ नहीं,
एक समय में दो शुभ-कर्म करना उत्तम नहीं है।
उसमें भी कन्या के विवाह के अनन्तर पुत्र का विवाह हो सकता है और
पुत्र- विवाह के अनन्तर पुत्री का विवाह छ मास तक नहीं हो सकता ।
एक वर्ष में सहोदर भाई अथवा बहनों का विवाह शुभ कारक नहीं ।
वर्ष भेद में और संकट में कर सकते हैं ।
समान ‘गोत्र और समान प्रवर वाली कन्या के साथ विवाह निषिद्ध है ।
विवाह के बाद एक वर्ष तक पिण्डदान, मृत्तिका स्नान, तिलतर्पण, तीर्थयात्रा,
मुण्डन, प्रेतानुगमन आदि नहीं करने चाहिये ।
विवाह में छिक्का (छींक) का दोष नहीं है ।
विवाहादिक कार्यों में स्पर्शास्पर्श का दोष नहीं होता ।
सुगम विवाह पद्धति पीडीऍफ़ फ्री डाउनलोड Sugam Vivah Paddhati
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