शबे बरात की हकीकत पीडीऍफ़ फ्री Shab e Barat ki Haqeeqat PDF shab e barat dawateislami pdf shab e bara’at dawat e islamic pdf book free download
हजरत मुफ्ती ताकि उस्मानी दस – शबे बरात की हक़ीकत
बिस्मिल्लाहीर रहमानीर रहीम
शाबान का महीना शुरू हो चूका है और इस महीने में एक मुबारक रात आने वाली है जिस का नाम शबे बरात हे चुके इस रात के बारे में बाज हज़रात का खियाल ये है के इस रात की कोई फ़ज़ीलत कुरान और हदीस से साबित नहीं और इस रात में जागना और इस में इबादत को खुसूसी तौर पर अजरो सवाब का जरिया समजना बे बुनियाद हे बल्कि बाज हज़रात ने इस रात में इबादत को बिदअत से भी ताबीर किया है इसलिए लोगो के जेहनो में इस रात के बारे में मुख्तलिफ सवालात पैदा हो रहे हे इसलिए इसके बारे में कुछ अर्ज़ कर देना मुनासिब मालूम हुवा.
दीन इत्तेबा का नाम हे – शबे बरात की हकीकत
इस सिलसिले में मुख़्तसर गुज़ारिश ये है के में आप हज़रात से बार बार ये बात अर्ज़ कर चूका हु के जिस चीज़ का साबुत कुरान में या सुन्नत में या सहाबा किराम (रदी) के असर में ताबेन बुज़रुंगाने दीन के अमल में न हो उसको दिन का हिस्सा समजना बिदअत हे और में हमेशा ये भी कहता रहा हु की अपनी तरफ से एक रास्ता घड़ कर उस पर चलने का नाम दीन नहीं है बल्कि दीन इत्तेबा का नाम है.
शबे बरात की हकीकत इन हिंदी
- हज़रत आज बिन जवल रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि
- आहज़रत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया,
- अल्लाह तआला पन्द्रहवीं शावान की रात में यानी चौदहवीं और पन्द्रहवीं शावान की दर्मियानी रात में
- अपनी तमाम महतूक की तरफ़ मुतवजह होते हैं, मुश्कि और दुश्मनी रखने वाले के सिवा मलूक की मफ़िरत फ़रमाते हैं।
- तबरानी ने औसत में और इब्ने हब्वान ने अपनी सहीह में और बेहकी ने इसको रिवायत किया।
अत्तर्गीय वत्तहींब, भाग 2, पृ० 18, भाग 3, पृ० 459
- हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि
- अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया
- अल्लाह तआला पन्द्रहवीं शाबान की रात में अपनी मख़्तूक की तरफ़ तवज्जोह फ़रमाते हैं
- और अपने बन्दों की मरिफरत फ़रमाते हैं, सिवाए दो के, (एक) दुश्मनी रखने वाला, (दूसरा) किसी (मोहतरम नएस) को कत्ल करने वाला।
- इसको इमाम अहमद ने नरम सनद के साथ रिवायत किया।
अत्तग्रव वत्तहींब, भाग 3, पृ० 460
- मकहूल रह० ने कसीर बिन मुर्रा से नकल किया
- उन्होंने हज़रत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से, आपने फ़रमाया,
- पन्द्रहवीं शाबान की रात में अल्लाह तआला ज़मीन वालों की मग्फ़िरत फ़रमाते हैं।
- मुश्रिक और दुश्मनी रखने वाले की मरिफरत नहीं फरमाते। बेहक़ी ने इसको रिवायत किया और फरमाया कि उम्दा मुर्सल’ है।
अत्तगव वत्तहींब, भाग 3, पृ० 461