वामनपुराण गीता प्रेस गोरखपुर PDF Vamana Purana Gita Press

वामनपुराण गीता प्रेस गोरखपुर PDF Vamana Purana Gita Press: सनातन धर्म (हिन्दू) की एक महत्वपूर्ण पुस्तक नाम वामनपुराण है यह भी 18 महापुराणों का एक भाग है अगर वामनपुराण गीता प्रेस गोरखपुर PDF DOWNLOAD करना चाहते है तो इस लेख के अंत में डाउनलोड लिंक शेयर किया गया है

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वामन पुराण क्या है

हिन्दू धर्म में कुल 18 महापुराण है उनमे से एक पुराण वामन पुराण है यह पुराण अन्य पुराण से आकर में छोटा है लेकिन इसकी महत्वता उतनी है जितनी अन्य महापुराण की है इस पुराण में वामन अवतार से भगवान विष्णु के सभी स्वरूपों का वर्णन किया गया है इस पुराण में लगभग 10,000 छंद है जो पृथ्वी पर विष्णु के अवतार की जानकारी प्रदान करते है

वामन पुराण के श्लोक

इस पुराण में बहुत से अध्याय है लेकिन वामन पुराण पहला अध्याय में श्लोक संस्कृत में निम्नवत है –

  • वामन पुराण के श्लोक पहला अध्याय –
  • नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम् ।
  • देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत् ॥
  • त्रैलोक्यराज्यमाक्षिप्य बलेरिन्द्राय यो ददौ ।
  • श्रीधराय नमस्तस्यै छद्यवामनरूपिणे । १
  • पुलस्त्यमृधिमासीनमाश्रमे वाग्विदां वरम् ।
  • नारदः परिपप्रच्छ पुराणं वामनाश्रयम् ॥ २
  • कथं भगवता ब्रह्मन् विष्णुना प्रभविष्णुना।
  • वामनत्यं घृतं पूर्व तन्ममाचक्ष्वं पृच्छतः ॥ ३
  • कथं च वैष्णवो भूत्वा प्रह्लादो दैत्यसत्तमः ।
  • त्रिदशैर्युयुधे सार्धमंत्र मे संशयो महान् ॥ ४
  • श्रूयते च द्विजश्रेष्ठ दक्षस्य दुहिता सती।
  • शंकरस्य प्रिया भार्यां बभूव वरवर्णिनी ।
  • किमर्थ सा परित्यज्य स्वशरीरं वरानना ।
  • जाता हिमवतो गेहे गिरीन्द्रस्य महात्मनः ॥ ६
  • एवमुक्तो नारदेन पुलस्त्यो मुनिसत्तमः ।
  • प्रोवाच वदतां श्रेष्ठो नारदं तपसो निधिम् ॥
  • ९ पुनश्च देवदेवस्य पत्नीत्वमगमच्छुभा ।
  • एतन्मे संशयं छिन्धि सर्ववित् त्वं मतोऽसि मे ॥
  • तीथांनां चैव माहात्म्यं दानानां चैव सत्तम ।
  • व्रतानां विविधानां च विधिमाचक्ष्व मे द्विज ॥ ८
  • पुलस्त्य उपाय पुराणं वामनं वक्ष्ये क्रमान्निखिलमादितः ।
  • अवधानं स्थिरं कृत्वा शृणुष्व मुनिसत्तम ॥ १०
  • पुरा हैमवती देवी मन्दरस्थं महेश्वरम्।
  • उवाच वचनं दृष्ट्वा ग्रीष्मकालमुपस्थितम् ॥ ११
  • ग्रीष्मः प्रवृत्तो देवेश न च ते विद्यते गृहम् ।
  • यत्र वातातपौ ग्रीष्मे स्थितयोन गमिष्यतः ॥ १२
  • एवमुक्तो भवान्या तु शंकरो वाक्यमब्रवीत्।
  • निराश्रयोऽहं सुदति सदारण्यचरः शुभे ॥ १३
  • इत्युक्ता शंकरेणाथ वृक्षच्छायासु नारद।
  • निदाघकालमनयत् समं शर्वेण सा सती ।। १४

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PDF NAMEVamana Purana
LANGAUGEHINDI
PUBLISHERGITA PRESS GORAKHPUR
PDF SIZE1 GB
PAGE494
CATEGORYHINDUISM BOOK
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