तोह्फए निकाह इन हिंदी PDF Tohfatun Nikah hindi PDF nikah ke masail dawateislami nikah book dawateislami nikah ka tarika in hindi pdf
तोह्फए निकाह इन हिंदी PDF Tohfatun Nikah hindi PDF nikah ke masail dawateislami nikah book dawateislami nikah ka tarika in hindi pdf
निकाह इस्लामिक धर्म में एक शादी का पवित्र संस्कार है जिसमें एक मर्द और एक औरत में संबंध स्थापित किया जाता है। यह शादी का रूप होता है जो इस्लाम के अनुयायियों द्वारा बहुत अधिक महत्व दिया जाता है।
निकाह के दौरान, शादीशुदा जोड़े के लिए कुछ महत्वपूर्ण अंग जैसे कि दहेज, मेहर, शादी में शामिल होने वाले लोगों की संख्या, निकाहनामा आदि तैयार किया जाता है। शादी के बाद, दोनों जीवनसाथी एक दूसरे के साथ अपनी जिम्मेदारियों को साझा करते हैं और एक दूसरे के साथ प्रेम, समझौता और सहयोग के बंधन में बंध जाते हैं।
तोह्फए निकाह इन हिंदी
इस्लामिक किताब तोह्फए निकाह से कुछ अंश लिखा हुआ हिंदी में पढ़े –आदावे निकाह
या मअशरश्शबाबि मनिस्तताआ मिनकुमुल बाअता फ़लयताज़ीवजु फ़डन्नडू अग़ज़ा लिल यसरि व अहसना लिल फ़रजि (खाहुल बुखारी व मुस्लिम)
तनुंमह : ऐ जवानों! तुम में से जिस किसी को शादी की ताकत हो उसे जरूर निकाह कर लेना चाहिए इसलिए कि शादी निगाह को नीची रखती है और शर्मगाह की हिफाजत करती हैं। शादी शुदह मर्द व औरत इस्मत व इज्जत की हिफाजत करते हुए वेगल रवी से महफूज़ रहते हैं।
क़ुरआन मजीद में भी अल्लाह तआला ने निकाह करने का हुक्म फ़रमाया है।
फनकिद्दू माताबा लकुम मिनन्निसाई मसना व सुलासा व रुबाअ।
तो निकाह में लाओ जो औरतें तुम्हें खुश (पसंद आयें दो दो और तीन तीन और चार चार (कंजुल ईमान अन्निसा आयत २)
मज़कूरह आयते मुवारकह में पसंदीदह औरतों से शादी करने का हुक्म है और बयक वक्त चार बीवियों साथ रखने की तरफ इशारह भी है लेकिन यह इस सूरत में है
तोह्फए निकाह इन हिंदी PDF
जबकि मर्द उनके दरमियान बदल व इंसाफ़ क़ाइम रख सके और जो हुकूके जीजियत अदा करने और उनके दरमियान अदल व इंसाफ़ पर कादिर न हो उसे चंद बीवियाँ रखना हराम है उसे एक ही पर इक्तिका करना लाजिमी है।
लिहाजा जो लोग इस्लाम और शास्त्रे इस्लाम को सुबो सितम का निशानह बनाते हैं वह इंतिहाई जलील और कमीनह पनी का सुबूत देते हैं इस्लाम का मिजाज समझने से कासिर हैं।
उन्हें मजलूम होना चाहिए कि लड़कियों की पैदाइश बनिस्बत लड़कों से ज्यादह होती है।
इसके इलावह जंगों में मदं ही शहसवारी करते हैं उनमें जख्मी भी होते हैं।
और शहीद भी अब अगर चंद बीवियाँ हुदूदे शरज की पाबंदी के
साथ जाइज़ न होती तो औरतों की खपत कहाँ होती ?
नस्ल की ज़्यादती और अदाद की कसरत से अरवावे हुकूमत
अपनी खाली झोलियाँ कैसे भरते और सिनफ़े नाजुक के दर्द का मदावा क्यों
कर मुम्किन होता लिहाजा करते अज्दवाज बिला शुका औरतों पर रहमत है।
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आदावे निकाह में तारीख का तअय्युन ज्यादह अहमियत का सामिल होता है कुछ जाहिल किस्म के लोग तारीखे निकाह मुतअय्यन करने के लिए जनतरी और किताबें खोलकर लोगों को गुमराह करते हैं कि फूलों तारीख में नहस है फ़लों में अकरब है। फलों में सअद है। याद रखिए यह सब शेई अकीदह है।
महीने की हर तारीख मुवारक और सईद है जिस तारीख में चाहें निकाह कर सकते हैं। शरीअते इस्लामियह में कोई तारीख़ मनहूस नहीं है चाहे उतरते चाँद की हो या ढलते चाँदनी की।
अलबत्तर दिनों के इन्तलाब में मुस्तहब है कि जुमेअरात या जुमअ की तारीख में निकाह करें
और बजाये सुबह के वक़्त के शाम में निकाह करना अफ़ज़ल है।
शराइते निकाह यह है कि दो गवाह हाज़िर हों
और दोनों गवाह सहीहुल अक़ीदह सुन्नी हों
फ़तावा रज्वियह शरीफ़ जिल्दप साह १६३ में है कि एक गवाह से निकाह नहीं हो सकता
जबतक कि दो मर्द या एक मर्द दो औरतें मुस्लिमह सुन्नी आक़िलह बालिग़ह न हों।
बअदे निकाह मिली व झुजूर तक्सीम करना बेहतर है।
नोट : तार, टेलीफोन, इन्टरनेट और ख़त के ज़रीअह निकाह जाइज़ नहीं निकाह के गवाहों को क़ाज़िए निकाह के सामने हाज़िर होना ज़रूरी है।
निकाह के फ़ाइदे
बुजुर्गों ने फ़रमाया कि निकाह के पाँच फ़ाइदे हैं
ख्वाहिश का क़ाबू में होना।
घर का इन्तिज़ाम दुरुस्त होना।
औलाद का होना।
बीवी बच्चों की ख़बर गीरी की वजह से मुस्तइव होना
सबसे बड़ा फ़ाइवह यह है कि प्यारे आका सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत है।
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