तांत्रिक साहित्य गोपीनाथ कविराज पीडीऍफ़ Tantrik Sahitya PDF FREE bhoot damar tantra book pdf tantrik sahitya gopinath kaviraj IN HINDI PDF FREE
तान्त्रिक साहित्य की विशालता – तांत्रिक साहित्य गोपीनाथ कविराज
तान्त्रिक साहित्य के नाना प्रकार के श्रेणि-विभाग मृगेन्द्र तन्त्र में उल्लिखित हैं- परमेश्वर ने सृष्टिकाल में जीवों के भोग और परापर मुक्तिरूप पुरुषार्थ की सिद्धि के लिए पञ्चस्रोतों में विभक्त निर्मल ज्ञान प्रकाशित किया था। ऊर्ध्व, पूर्व, दक्षिण, तर
और पश्चिम ये पाँच स्रोत प्रसिद्ध हैं। निष्कल शिव से अवबोध रूप ज्ञान पहले नाद के आकार में प्रसृत होता है। तदनन्तर वह ज्ञान सदाशिवरूप भूमि में आकर तन्त्र तथा शास्त्र के आकार को प्राप्त होता है। कामिक-आगम के अनुसार सदाशिव के ही प्रत्येक मुख से पाँच स्रोतों का निर्गम हुआ है।
उनमें पहला लौकिक है, दूसरा वैदिक है, तीसरा आध्यात्मिक है, चौथा अतिमार्ग और पाँचवाँ मन्त्रात्मक है। मुख पाँच हैं, इसलिए स्रोतों की संख्या समष्टि रूप में २५ है । लौकिक तन्त्र पाँच प्रकार के हैं। वैदिकादि प्रत्येक तन्त्र भी पाँच प्रकार के हैं । सर्वात्मशम्भु कृत सिद्धान्तदीपिका में लौकिकादि विभागों का विवरण दिया गया है ।
तान्त्रिक तन्त्र पाँच प्रकार के हैं। वे क्रमशः ऊर्ध्व आदि वक्त्रों के भेद से भिन्न- भिन्न प्रकार के हैं । उनमें जो ऊर्ध्व मुख से उत्पन्न है, वह मुक्ति देने वाला सिद्धान्तागम है, जो पूर्वमुख से उत्पन्न है, वह सब प्रकार के विषों को हरने वाला गारुड तन्त्र है, जो उत्तर मुख से उद्भूत है, वह सबके वशीकरण के लिए उद्दिष्ट है, जो पश्चिम मुख से उत्पन्न है, वह भूतग्रह निवारक भूततन्त्र है और जो दक्षिण मुख से उद्गत है, वह शत्रुक्षयकर भैरव-तन्त्र है।
यह सम्पूर्ण विवरण कामिकागम में है । तान्त्रिक लोग कहते हैं कि नादरूप ज्ञान के अतिरिक्त शास्त्ररूप ज्ञान में वेदादि अपर ज्ञान से सिद्धान्तज्ञान उत्कृष्ट है। सिद्धान्त- ज्ञान में भी शिवज्ञान तथा रुद्रज्ञान में परापर भेद है। शिवज्ञान में भी परापर भेद है और रुद्रज्ञान में भी वह समान रूप से विद्यमान है। इसका मूल है प्रवक्ता का क्रम ।
तांत्रिक साहित्य गोपीनाथ कविराज पीडीऍफ़
पुस्तक तांत्रिक साहित्य गोपीनाथ कविराज पीडीऍफ़ Tantrik Sahitya PDF FREE से कुछ अंश पढ़े – काली
- महाविद्या-क्रम में सबसे प्रथम काली का स्थान माना जाता है।
- तदनुसार काली के अर्चन तथा तत्त्व का अवलम्बन कर जितने सिद्धान्त तथा प्रयोग ग्रन्थ प्रसिद्ध हुए हैं
- उनमें से दो-चार का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है।
- कालीतत्त्व के विषय में महाकालसंहिता अति उत्कृष्ट ग्रन्थ है ।
- इसका आयतन अत्यन्त विशाल है, किन्तु यह अखण्ड रूप में सर्वत्र उपलब्ध नहीं होता ।
- नेपाल में इसका अपेक्षाकृत कुछ अधिक अंश उपलब्ध है ।
- काल- ज्ञान कालीविषयक एक अच्छा ग्रन्थ है ।
- कालोत्तर के नाम से इसका एक परिशिष्ट भी था।
- यह भी प्राचीन ग्रन्थ है, क्योंकि कश्मीर के क्षेमराज ने साम्वपञ्चाशिका की टीका में इसका उल्लेख किया है।
- हेमाद्रि, रघुनन्दन तथा कमलाकर भट्ट को भी इस ग्रन्थ का परिचय था।
- इस प्रकार के अन्यान्य ग्रन्थों में कालीकुलक्रमार्चन (विमलबोध कृत), भद्रकाली- चिन्तामणि,
- व्योमकेशसंहिता, कालीयामल, कालीकल्प, कालीसपर्याक्रमकल्पवल्ली, श्यामारहस्य (पूर्णानन्द कृत),
- कालीविलासतन्त्र, कालीकुलसर्वस्व, कालीतन्त्र, काली- परा, कालिकार्णव, विश्वसारतन्त्र, कामेश्वरीतन्त्र, कुलचूडामणि, कौलावली, कालीकुल, कुलमूलावतार आदि ग्रन्थ विशेष रूप से अध्ययन योग्य हैं।
- काशीनाथ तर्कालङ्कार भट्टा- चार्य कृत श्यामासपर्या भी अच्छा ग्रन्थ है ।
- शक्तिसंगमतन्त्र का कालीखण्ड, कालिका- चमुकुर, कालीकुलामृत प्रभृति ग्रन्थों की भी प्रसिद्धि कुछ कम नहीं है।
- आद्यानन्दन या नवमीसिंह कृत कुलमुक्तिकल्लोलिनी का प्रचार नेपाल में अधिक है।
- स्तोत्रों में महा- काल विरचित कर्पूरस्तव प्रसिद्ध है। उस पर बहुत-सी टीकाएँ हैं ।
- कालीभुजङ्गप्रयात स्तोत्र की प्रसिद्धि भी कुछ कम नहीं है।
- भैरवीतन्त्र में जो कालीमाहात्म्य प्रकाशित हुआ है, वह भी दर्शनीय है
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PDF NAME | Tantrik Sahitya |
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LANGUAGE | HINDI |
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