सुन्नी बहिश्ती जेवर किताब पीडीऍफ़ Sunni Bahishti Zewar Hindi

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बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

الحمد لله الواحد الوحيد الصمد لم يلد هم برند و هم میکن له كفو الحد والصلوة والسلام على حبيبه سيدة الحمد الممجدول آله واصحابه والتابعين نهم باحسان و میما بهم وفهمهم ریه بر متن یا منان به مثل

तहारत का बयान

नमाज़ के लिए तहारत (पाकी) ऐसी जरूरी चीज है कि बगैर उसके नमाज नहीं होती। बल्कि जान बूझकर बगैर तहार नमाज अदा करने को उलेमाए किराम कुफ लिखते हैं हुदूरे अकदस सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं कि जन्नत की कुंजी नमाज है और नमाज़ की कुंजी तहारत। (इमाम अहमद)

एक रोज़ नबीए करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम सुबह में सूरः रूम पढ़ते थे कि मुतशाबिहा लगा। यानी किरआत में शुबहा पड़ा। बाद नमाज़ इर्शाद फ़रमाया क्या हाल है, उन लोगों का जो हमारे साथ नमाज़ पढ़ते हैं और अच्छी तरह तहारत नहीं करते । उन्हीं की वजह से इमाम को क्रिआत में शुबहा पड़ता है”। (नसई शरीफ)

तो जब बग़ैर कामिल तहारत नमाज़ पढ़ने का वबाल यह है तो बे तहारत नमाज़ पढ़ने की नुहूसत का क्या पूछना। यह की बेअदबी व तौहीन है और उसका नतीजा मालूम। मौला अज्जोजल अपने महबूब सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के तुफैल हर मुसलमान का खात्मा ईमान पर फरमाये । आमीन०

सुन्नी बहिश्ती जेवर

सुन्नी बहिश्ती जेवर किताब पीडीऍफ़ Sunni Bahishti Zewar Hindi – इस्लामिक किताब से कुछ अंश लिखा हुआ पढ़े – चन्द ज़रूरी इस्तलाहें

  • फूर्ज: यह बात कि वे उसके किए आदमी बरीउज्ज़िम्मा न होगा।
  • यहां तक कि अगर वह किसी इबादत में है तो वे उसके बातिल व माजवूम होगी। उसका छोड़ना गुनाहे कबीरा है।
  • वाजिब वह कि बे उसके किए भी बरीउज्जम्मा होने (छुटकारा पाने) का एहतिमाल है
  • मगर गालिब गुमान उसकी ज़रूरत पर है
  • और अगर किसी इबादत में उसक बजा लाना दरकार हो तो
  • इबादत के उसके नाकित रहे । किसी वाजिब का एक बार भी सदन छोड़ना गुनाहे सग़ीरा है
  • और चन्द बार छोड़ना गुनाह कबीरा।
  • सुनत मोबक्किदा: वह जिसको हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमेशा किया ह
  • अलबत्ता कभी तर्क भी फ़रमाया दिया हो (न किया हो) या
  • वह कि उसके करने की ताकीद फरमाई उसका करना सवाब
  • और न करना बहुत बुरा यहां तक कि जो उसके छोड़ने की आदत डाल ले वह अज़ाब का मुस्तहिक है।
  • सुन्भत गैर मोक्किदा: वह कि उसका छोड़ना शरीअत को पसन्द नहीं।
  • उसका करना सवाब और न करना अगरचें बतौर आदत हो किताब का मोअजिब नहीं ।
  • मुस्तहब: वह जिस का करना शरीअत को पसन्द है
  • मगर न करने पर कुछ नापसन्दी न हो उसका करना सवाब और न करने पर मुतलकन कुछ नहीं।
  • हराम कतई: यह फर्ज का मुकाबिल है उसका एक बार भी कसदन करना
  • गुनाह कबीरा व फिरक है और बचना फर्ज व सवाब ।
  • मकरूह तहरीमी: वह कि उसके करने से इबादत नाकिस हो जाती है
  • और करने वाला गुनाहगता है और चन्द बार उसका करना गुनाहे कबीरा होता है।
  • मकरूह तनज़ीही: वह जिसका करना शरीअत को पसन्द नहीं
  • मगर न उस हद तक कि उसके करने पर अज़ाब आये।

वुज़ू का बयान

अल्लाह तआला इर्शाद फ़रमाता है- यानी ‘ऐ ईमान वालो जब तुम नमाज़ पढ़ने का इरादा करो तो अपने मुंह और कोहनियों तक हाथों को धोओ और सरों का मसह करो और टखनों तक पावं घोओ” ।

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