शौहर के हुक़ूक़ बीवी पर इन हिंदी पीडीऍफ़ Shauhar Ke Huqooq

शौहर के हुक़ूक़ बीवी पर इन हिंदी पीडीऍफ़ Shauhar Ke Huqooq shohar ke huqooq in islam shohar ke huqooq in islam in hindi शौहर की नाफरमानी की सजा इन हिंदी पीडीऍफ़

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बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहिम

1] रसूलुल्लाह ने फरमाया जो औरत पांचो वकत की नमाज पढे और रमजान के रोज़े रखे और अपनी शर्मगाह की हिफाज़त करे और अपने शौहर की आज्ञापालन करे तो वो जन्नत के दरवाजो मेसे जिस दरवाज़े से चाहे दाखिल हो. _मिश्कात की रिवायत का खुलासा । रावी अनस रदी.

2] रसूलुल्लाह से पूछा गया कि कौन सी बीवी सबसे बेहतर है? आपने फरमाया कि वो बीवी जो अपने शौहर को खुश करे जबभी वो उसकी तरफ देखे, उसकी इताअत करे, और अपने माल के बारे में कोई ऐसा रवय्या ना अपनाए जो शौहर को नापसन्द हो. अपने माल से मुराद वो माल है जो शौहर ने घर की मालिका की हैसियत से उसके हवाले कर दिया है.

शौहर के हुक़ूक़ बीवी पर इन हिंदी

रसूलुल्लाह के पास एक औरत आई और हम आपके पास बैठे हुए थे, उसने कहा मेरे शौहर सफवान बिन मुअत्तिल रदी मुझे मारते है जबमें नमाज पढती हूं और मुझे रोज़ा तोडने के लिए कहते है जबभी में रोज़ा रखती हूं और वो फज़र की नमाज नहीं पढते जब तक्की सूरज नहीं निकल आता.

  • अबू सईद रदी फरमाते है कि सफवान रदी वही बैठे हुए थे,
  • तो आपने उनसे उनकी बीवी की शिकायत के बारे में पूछा तो
  • उन्होने कहा ए अल्लाह के रसूल! नमाज पढने पर मारने की शिकायत की हकीकत येहे कि
  • वो दो-दो सूरतें पढ़ती है और में उसे मना करता हूं,
  • तो आप ने फरमाया कि एक ही सूरत काफी है.
  • सफवान रदी ने फिर कहा कि रोज़ा तोड़ने की शिकायत की हकीकत येहे कि
  • ये रोज़ा रखे चली जाती है और में जवान आदमी हूं सबर नहीं कर सकता है,
  • तो आप ने फरमाया कोई औरत अपने शौहर की इजाज़त के बगैर रोज़ा नहीं रख सकती.

Shauhar Ke Huqooq IN ISLAM

उसके बाद उन्होने कहा कि सूरज निकलने के बाद नमाज पढने की बात येहे कि हम उस खानदान से संबंध रखते है जिसके लिए ए बात मशहूर है कि हम नहीं जाग सकते जब तक सूरज ना निकल आए, इस पर आप ने फरमाया कि ए सफवाना जब तुम जागो तो नमाज पढ लिया करो. इस रिवायत से ये बातें जहीर होती है :

पतिओ को ये हुकूक नहीं है कि वो अपनी बिवीयों को फर्ज़ नमाज पढने से रोके, हा औरत के लिए ये जरूरी है कि 2 वो शौहर की जरूरतो का खयाल रखे और दीनदारी के शौक में वो लम्बी लम्बी सूरतें ना पढे, रही नफील नमाज तो उसमे शौहर की जरूरतों का खयाल रखना जरूरी है बगैर उसकी इजाज़त के नफील नमाजो में ना लगे इसी तरह नफ्ली रोज़ा भी उसकी इजाज़त के बगैर ना रखे.

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