रोजों के मसाइल इन हिंदी पीडीऍफ़ Rozon Ke Masail PDF IN HINDI nafli roza ke masail in HINDI roze ki niyat kab tak kar sakte hain nafil roze ki niyat in hindi
الْحَمْدُ للهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ وَالصَّلاةُ وَالسَّلَامُ عَلَى سَيدِ الْمُرْسَلِينَ وَالْعَاقِبَةُ لِلْمُتَّقِينَ أما بعد:
रमज़ान नुज़ूले कुरआन का महीना, अल्लाह तआला की ख़ास रहमतों और बरक़तों का महीना, सब्र का महीना, फ़राख़ी रिज़्क की कुशादगी का महीना, एक दूसरे से भला चाहने का महीना, जन्नत में दाखिल होने और जहन्नम से आज़ादी हासिल करने का महीना
रमज़ान सारी दुनिया के मुसलमानों के ज़िक्र व फ़िक्र, तस्बीह व तहलील, तिलावत व नवाफ़िल, सदक़ा व ख़ैरात अर्थात हर क़िस्म की इबादत का एक विश्व व्यापी मौसमे बहार, जिससे दुनिया का हर मुसलमान अपने-अपने ईमान और तक़वा से संबन्धित हिस्सा पाकर दिल को सुख और आंखों को ठंडक हासिल करता है।
इबादत के इस मौसमे बहार को जिसे ठीक-ठीक देखना हो वह इस महीने के बरकतों वाले दिन रात में विनय व गौरव वाले घर बैतुल्लाह शरीफ़ में जाकर देखे, जहां दिन के समयों में ज़िक्र व फ़िक्र की महफ़िलें, तिलावते क़ुरआन की मजालिस, अहकाम व मसाइल के हल्के, तवाफ़ करने वालों की भीड़ और रात के समयों में तरावीह के रूह को तड़पा देने और ईमान को -मज़बूत करने वाले मनाज़िर किस तरह गुनाहगार से गुनाहगार इन्सान के दिल में भी शौक़ इबादत पैदा कर देते हैं।
रमज़ानुल मुबारक के आख़िरी हिस्से (21 से 30 रमज़ान तक) में हरम शरीफ़ में हाज़िरी से रौनक़ दो गुनी हो जाती हैं
नमाज़े तरावीह के मसाइल
मसला – नमाज़े तरावीह पिछले छोटे गुनाहों की मगफ़िरत का ज़रिया है।
عَن أبي هريرة رضى اللهُ عَنْهُ أَنَّ رَسُولَ اللهِ ﷺ قَالَ : مَنْ قَامَ رَمَضَانَ إِيْمَانًا وَإِحْتِسَابًا خير لَهُ مَا تَقَدَّمَ مِنْ ذَنْبِهِ . رَوَاهُ الْمَارِى
- हज़रत अबू हुरैरह रज़ि० से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्ल० ने फ़रमाया
- “जिसने ईमान के साथ और सवाब की नीयत से रमज़ान में क़याम किया
- उसके पिछले सारे गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं।” इसे बुख़ारी ने रिवायत किया है।
मसला – क़याम रमज़ान या नमाज़े तरावीह बाक़ी महीनों में तहज्जुद या रात के क़याम का दूसरा नाम है।
मसला – नमाज़ तरावीह (या तहज्जुद) की मसनून रकअतें आठ हैं लेकिन गैर मसनून रकअतों की कोई हद नहीं, जो जितनी चाहे पढ़े।
रोजों के मसाइल Rozon Ke Masail
रोज़ा कुरआन मजीद की रौशनी में
- मसला –रोज़ा इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक स्तंभ है। मसला 14. रोज़े पहली उम्मतों पर भी फर्ज थे।
- मसला – रोज़े का उद्देश्य गुनाहों से बचने और नेकी पर चलने का प्रशिक्षण देना है।
يَأَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا تُجبَ عَلَيْكُمُ العيامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الذِينَ مِنْ قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَقُوْنَ ) (۱۸۳:۲)
- ऐ लोगो, जो ईमान लाए हो! तुम पर रोज़े फर्ज़ कर दिए गए
- जिस तरह तुमसे पहले अंबिया के मानने वालों पर फर्ज़ किए गए थे।
- इससे आंशा है कि तुम में तक़वा की विशेषता पैदा होगी।
(सूरह बक़रा, आयत : 183)
- मसला – रमज़ान का महीना पाने वाले हर मुसलमान पर पूरे महीने के रोज़े रखने फर्ज़ हैं।
- मसला – मुसाफ़िर और मरीज़ को रोज़ा न रखने की छूट है, लेकिन रमज़ान के बाद उन दिनों की क़ज़ा अदा करनी ज़रूरी है।
- रोगी या मुसाफ़िर पर रोज़ा छोड़ने का कोई प्रायश्चित नहीं है।