श्री रामचरितमानस गीता प्रेस गोरखपुर PDF DOWNLOAD NEW

श्री रामचरितमानस गीता प्रेस गोरखपुर PDF DOWNLOAD Sri Ramcharitmanas Book IN HINDI: भगवान् श्री राम के बारें में लिखी गई पुस्तक श्री रामचरितमानस को लिखने में 2 महीने 26 महीने का समय लगा था इस पुस्तक/किताब को सोलहवी सदी में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखा गया था अगर श्री राम चरित्र मानस पीडीऍफ़ डाउनलोड करना चाहते है तो अंत में डाउनलोड लिंक शेयर किया गया है

राम चरित्र मानस में कुल कितने कांड है

सनातन धर्म की पुस्तक राम चरित्र मानस में कुल सात कांड है सभी विभाजित कांड के नाम निम्नवत है –

  1. बाल कांड
  2. अयोध्या कांड
  3. अरण्य काण्ड
  4. किष्किंधा कांड
  5. सुंदर कांड
  6. युद्ध कांड
  7. उत्तर कांड

रामचरितमानस सुंदरकांड चौपाई अर्थ सहित

सुंदरकांड चौपाई:जगदीश्वर की वंदना शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम्। रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं वन्देऽहंकरुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम्॥1॥

अर्थ: शान्त, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप, मोक्षरूप परमशान्ति देने वाले, ब्रह्मा, शम्भु और शेषजी से निरंतर सेवित, वेदान्त के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में दिखने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले जगदीश्वर की मैं वंदना करता हूँ॥1॥

सुंदरकांड चौपाई: रघुनाथ जी से पूर्ण भक्ति की मांग नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा। भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे कामादिदोषरहितंकुरु मानसं च॥2॥

अर्थ: हे रघुनाथजी! मैं सत्य कहता हूँ और फिर आप सबके अंतरात्मा ही हैं (सब जानते ही हैं) कि मेरे हृदय में दूसरी कोई इच्छा नहीं है। हे रघुकुलश्रेष्ठ! मुझे अपनी निर्भरा (पूर्ण) भक्ति दीजिए और मेरे मन को काम आदि दोषों से रहित कीजिए॥2॥

सुंदरकांड चौपाई: हनुमान जी का वर्णन अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्। सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तंवातजातं नमामि॥3॥

अर्थ: अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान् जी को मैं प्रणाम करता हूँ ॥3॥

This book was brought from archive.org as under a Creative Commons license, or the author or publishing house agrees to publish the book. If you object to the publication of the book, please contact us.for remove book link or other reason. No book is uploaded on This website server only external link is given

Related PDF

LATEST PDF