निजामे शरियत किताब पीडीऍफ़ NIZAM E SHARIYAT PDF FREE

निजामे शरियत किताब पीडीऍफ़ NIZAM E SHARIYAT PDF FREE – “निजामे शरियत” एक उर्दू शब्द है जो इस्लामिक शरियत या इस्लामिक कानून के लिए उपयोग किया जाता है। यह एक फ़ारसी शब्द “نظام شریعت” से लिया गया है, जो शरीयत का एक अर्थ है। निजामे शरियत शब्द इस्लामिक न्याय प्रणाली के लिए भी उपयोग किया जाता है जो कि कई मुस्लिम देशों में अपनाया जाता है। इसमें कई इस्लामिक कानूनों, विधियों, तर्कों और प्रेक्षितों का समावेश होता है।

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निजामे शरियत किताब

इस्लामिक किताब निजामे शरियत को डाउनलोड करने से पहले कुछ अंश लिखा हुआ हिंदी में पढ़े – पेशाब से न बचने की सजा

हज़रत अब्दुल्लाह इब्न अब्बास रज़ियल्लाहु तआला अन्हुँ फरमाते हैं कि हुजूर पुर नूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम दो कब्रों के पास पहुंचे और फ्रमाया कि इन दोनों कब्र वालों पर अज़ाब हो रहा है और किसी ऐसी चीज़ की बिना पर अज़ाब नहीं हो रहा जिससे बचना दुश्वार होता। एक पर इस लिए अज़ाब हो रहा है कि पेशाब से न बचता था

और दूसरे पर इस लिए कि चुगली खाता था। फिर रहमते आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने खजूर की एक तर शाख लेकर उसके दो हिस्से किए और हर कब्र पर एक-एक हिस्सा नस्य फ़रमाया। सहाबए किराम ने अर्ज किया या रसूलल्लाह यह अमल किस लिए किया।

फ़रमाया शाखें जब तक खुश्क न होंगी बेशक अज़ाब में कमी होती रहेगी। (बुखारी शरीफ) वह मुस्लिम मर्द और वह ख्वातीन खुसूसियत से तवज्जोहह फरमाएं जो पेशाब कर के बगैर इस्तिनजे के पाएजामा बांध लेते हैं।

तालीमात:

  • इस वाकिआ से नबवी आँखों की इम्तियाज़ी शान जाहिर होती है
  • कि मौला तआला ने उन्हें वह मखसूस बीनाई अता क्रमाई है
  • जिससे जमीन के अन्दरूनी हालात भी नज़र आते हैं।
  • दूसरे अम्बियाए किराम अलैहिमुस्सलातु वस्सलाम की आँखों को भी यह इम्तियाज़ बख़्शा गया था।

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इस्लामिक किताब निजामे शरियत फ्री में डाउनलोड करें इसके लिए सबसे आखिर में डाउनलोड लिंक शेयर किया गया है आगे कुछ अंश किताब से पढ़े – गुस्ल का तयम्मुम

  • वज़ू की तरह होता है। कोई फर्क नहीं।
  • नबवी अहद में यह बाकि अ पेश आया कि हजरत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
  • और हज़रत अम्मार रजियल्लाहु तआला अन्हु सफर में थे और दोनों को गुस्ल की जरूरत हुई
  • और किसी को यह इल्म न था कि वज़ू की तरह गुस्ल के लिए भी तयम्भुम होता है।
  • चुनांचे पानी दस्तियाब न होने पर हज़रत उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने
  • बई ख़्याल तयम्मुम नहीं किया कि वह बजाए गुस्ल काफी न होगा और उनकी नमाज़ क़ज़ा हो गई
  • और हज़रत अम्मार रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने यह ख्याल किया कि
  • गुस्ल में सब बदन पर पानी बहाया जाता है
  • तो ग़ुस्ल के तयम्मुम में सब बदन पर मिट्टी लगना चाहिए।
  • नज़र-बरौं वह जमीन पर खूब लोटे और इस तरह तयम्मुम करके नमाज़ अदा की
  • फिर सय्यदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की ख़िदमत में हाज़िर होकर
  • वाकिआ अर्ज़ किया तो आपने यह हिदीत फ़रमाई कि वज़ू की तरह गुस्ल के वास्ते तयम्मुम काफी था ।

मसला:- जिस पर गुस्ल फ़र्ज़ है उसे यह ज़रूरी नहीं कि गुस्ल और वजू दोनों के लिए दो तयम्मुम करे बल्कि एक ही में दोनों की नीयत करले। दोनों हो जायेंगे और अगर सिर्फ गुस्ल या क्जू की नीयत की जब भी काफ़ी है।

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