जन्नती जेवर किताब हिंदी में Jannati Zewar Hindi PDF in HINDI

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Jannati Zewar – जन्नती जेवर हिंदी में एक प्रसिद्ध इस्लामी किताब है। यह किताब मुस्लिम महिलाओं के लिए लिखी गई है और इसमें धार्मिक ज्ञान, आचार, नियम, और मार्गदर्शन संबंधित विषयों पर चर्चा की गई है।

जन्नती जेवर के लेखक का नाम मौलाना अशरफ अली थानवी (Maulana Ashraf Ali Thanvi) हैं। यह किताब उनके द्वारा लिखी गई और अधिकांश देशों में मुस्लिम महिलाओं के बीच प्रसिद्ध हुई है।

जन्नती जेवर किताब में विभिन्न विषयों पर चर्चा होती है, जैसे घरेलू जीवन, नियमित पूजा, रोज़ा, नमाज़, जनाज़ा, वक़्त, निकाह, तलाक़, वगैरह। यह किताब महिलाओं को इस्लामी आदर्शों के साथ संबंधित जानकारी प्रदान करती है और उन्हें धार्मिक जीवन में मार्गदर्शन करने का उद्देश्य रखती है।

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जन्नती जेवर किताब हिंदी में Jannati Zewar Hindi

औरत इस्लाम से पहले – जन्नती जेवर

इस्लाम से पहले औरतों का हाल बहुत खराब था दुन्या में औरतों की कोई इज्जत व वुकअत ही नहीं थी। मर्दों की नज़र में इस से ज़ियादा औरतों की कोई हैषिय्यत ही नहीं थी कि वोह मर्दों की नफ़्सानी ख़्वाहिश पूरी करने का एक “खिलौना” थी। औरत दिन रात मर्दों की किस्म किस्म की खिदमत करती थीं और तरह तरह के कामों से यहां तक कि दूसरों की मेहनत मज़दूरी कर के जो कुछ कमाती थीं

  • वोह भी मर्दों को दे दिया करती थीं मगर जालिम मर्द फिर भी
  • इन औरतों की कोई कद्र नहीं करते थे बल्कि जानवरों की तरह इन को मारते पीटते थे।
  • ज़रा ज़रा सी बात पर औरतों के कान नाक वग़ैरा आ’जा काट लिया करते थे
  • और कभी क़त्ल भी कर डालते थे। अरब के लोग लड़कियों को ज़िन्दा दफ्न कर दिया करते थे
  • और बाप के मरने के बाद उस के लड़के जिस तरह बाप की जाइदाद और सामान के मालिक हो जाया करते थे
  • इसी तरह अपने बाप की बीवियों के मालिक बन जाया करते थे
  • और इन औरतों को अपने बाप की बीवियों के मालिक बन जाया करते थे
  • और इन औरतों को ज़बरदस्ती लौंडियां बना कर रख लिया करते थे।
  • औरतों को इन के मां-बाप भाई-बहन या शोहर की मीराष में से कोई हिस्सा नहीं मिलता था
  • न औरतें किसी चीज़ की मालिक हुवा करती थीं

औरत इस्लाम से पहले – जन्नती जेवर इन हिंदी

जन्नती जेवर किताब हिंदी में Jannati Zewar Hindi PDF in HINDI – अरब के बा’ज़ क़बीलों में येह ज़ालिमाना दस्तूर था कि बेवा हो जाने के बाद औरतों को घर से बाहर निकाल कर एक छोटे से तंगो तारीक झोपड़े में एक साल तक क़ैद में रखा जाता था वोह झोपड़े से बाहर नहीं निकल सकती थीं न गुस्ल करती थीं न कपड़े बदल सकती थीं

  • खाना-पानी और अपनी सारी ज़रूरतें इसी झोंपड़े में पूरी करती थीं
  • बहुत सी औरतें तो घुट घुट कर मर जाती थीं और जो जिन्दा बच जाती थीं तो
  • एक साल के बाद इन के आंचल में ऊंट की मेंगनियां डाल दी जाती थीं
  • और इन को मजबूर किया जाता था कि वोह किसी जानवर के बदन से
  • अपने बदन को रगड़ें फिर सारे शहर का इसी गन्दे लिबास में चक्कर लगाएं
  • और इधर उधर ऊंट की मेंगनियां फेंकती हुई चलती रहें येह इस बात का एलान होता था कि

इन औरतों की इद्दत ख़त्म हो गई है इसी तरह की दूसरी भी तरह तरह की ख़राब और तक्लीफ़ देह रस्में थीं जो गरीब औरतों के लिये मुसीबतों और बलाओं का पहाड़ बनी हुई थीं और बेचारी मुसीबत की मारी औरतें घुट घुट कर और रो रो कर अपनी ज़िन्दगी के दिन गुज़ारती थीं

  • हिन्दूस्तान में तो बेवा औरतों के साथ ऐसे ऐसे दर्दनाक
  • ज़ालिमाना सुलूक किये जाते थे कि जिन को सोच सोच कर
  • कलेजा मुंह को आ जाता है हिन्दू धर्म में हर औरत के लिये फ़र्ज़ था कि
  • वोह ज़िन्दगी भर क़िस्म किस्म की किस्म किस्म की ख़िदमतें कर के “पती पूजा” (शोहर की पूजा) करती रहे

जन्नती जेवर किताब हिंदी में Jannati Zewar in HINDI

और शोहर की मौत के बाद उस की “चिता” की आग के शोलों पर जिन्दा लैट कर “सती” हो जाए यानी शोहर की लाश के साथ ज़िन्दा औरत भी जल कर राख हो जाए। गरज पूरी दुन्या में वे रहूम और ज़ालिम मर्द औरतों पर ऐसे ऐसे जुल्मो सितम के पहाड़ तोड़ते थे कि

इन जालिमों की दास्तान सूतिकर एक दर्दमन्द इन्सान के सीने में रंजो गम से दिल टुकड़े टुकड़े हो जाता है इन मज़लूम और बे कस औरतों की मजबूरी व लाचारी का येह आलम था कि समाज में न औरतों के कोई हुकूक थे न इन की मज्लूमिय्यत पर दादो फ़रियाद के लिये किसी कानून का कोई सहारा था

  • हज़ारों बरस तक ये जुल्मो सितम की मारी दुख्यारी औरतें
  • अपनी इस बे कसी और लाचारी पर रोती बिल-बिलाती और
  • आंसू बहाती रहीं मगर दुन्या में कोई भी इन औरतों के
  • ज़ख्मों पर मर्हम रखने वाला और इन की मज्लूमिय्यत के
  • आंसूओं को पौंछने वाला दूर दूर तक नज़र नहीं आता था
  • न दुन्या में कोई भी इन के दुख-दर्द की फरियाद सुनने वाला था
  • न किसी के दिल में इन औरतों के लिये बाल बराबर भी रहूमो करम का कोई जज़्बा था

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औरतों के इस हाले ज़ार पर इन्सानिय्यत रंजो ग़म से बे चैन और बे क़रार थी मगर इस के लिये इस के सिवा कोई चारा कार नहीं था कि वोह रहमते खुदावन्दी का इन्तिज़ार करे कि अर-हमर्राहिमीन ग़ैब से कोई ऐसा सामान पैदा फ़रमा दे कि अचानक सारी दुन्या में एक अनोखा इन्किलाब नुमूदार हो जाए और लाचार औरतों का सारा दुख-दर्द दूर हो कर इन का बेड़ा पार हो जाए चुनान्वे रहमत का आफ्ताब जब तुलूअ हो गया तो सारी दुन्या ने अचानक येह महसूस किया कि

जहां तारीक था, जुल्मत कदा था, सख़्त काला था

कोई पर्दे से क्या निकला कि घर घर में उजाला था

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