हजरत अली बुक इन हिंदी पीडीऍफ़ Hazrat Ali Book in Hindi PDF

हजरत अली बुक इन हिंदी पीडीऍफ़ Hazrat Ali Book in Hindi PDF life of hazrat ali pdf hazrat ali ka waqia in hindi हजरत अली का जीवन परिचय पीडीऍफ़ फ्री

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लड़कपन और जवानी – हजरत अली

हज़रत अली रजियल्लाहु अन्हु हजरत उस्मान रजियल्लाहु अन्हु के शहीद कर दिए जाने के बाद ख़लीफ़ा बनाए गए। यह इस्लामी राज्य के चौथे खलीफा थे।

हज़रत अली रजियल्लाहु अन्हु अबू तालिब के बेटे और अल्लाह के रसूल सल्ल० के चचरे भाई थे। चूंकि हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बचपन ही से अबू तालिब के घर पले-बढ़े, इस लिए हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम व अली रज़ियल्लाहु अन्हु का साथ शुरू ही से रहा। दोनों में एक दूसरे के लिए अत्यधिक प्रेम-भाव था।

हजरत अली बुक

ISLAMIC BOOK PDF IN HINDI – हजरत अली बुक इन हिंदी पीडीऍफ़ (Hazrat Ali Book in Hindi PDF) से कुछ अंश लिखा हुआ पढ़े

हजरत मुहम्मद सल्ल0 जब पैगम्बर बनाये गए तो हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु मात्र दस साल के एक लड़के थे। आप उन आरंभ के दस लोगों में से हैं जिन्होंने प्यारे, नवी सल्ल0 के पैग़म्बर बनने का एलान करते ही उन पर ईमान लाने का श्रेय प्राप्त किया।

उसी समय की घटना है कि हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक बार अपने कुछ नातेदारों को खाने पर निमंत्रित किया। खाने के बाद प्यारे नबी ने इस्लाम का आह्वान किया और इसके बाद तीन बार पूछा कि मौजूद लोगों में से कौन मुझ पर और अल्लाह पर ईमान लाएगा। सब लोग चुप रहे, लेकिन तीनों बार हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने खड़े होकर कहा-

“मैं आप पर और अल्लाह पर सच्चे दिल से ईमान लाता हूं।” उस समय ईमान लाने का अर्थ था परीक्षा से गुज़रना, विपत्तियों और कष्टों का शिकार होना, अत्याचार का सहन करना और परेशान होना। हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु भी इन परिस्थितियों से गुजरने लगे,

इन आज़माइशों और परेशानियों से गुजरने के बावजूद आप अपने मिशन पर जमे रहे और सत्य पर अडिग रहने और सत्य सन्देश सभी तक पहुंचाने में आगे बढ़ कर काम करते रहे। जब विरोध चरम सीमा को पहुंच गया और प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्कालम वहां चलना-फिरना, रहना-सहना दूभर हो गया तो आपने वहां से हिजरत (देश-परित्याग) का निर्णय कर लिया।

हजरत अली बुक इन हिंदी

हजरत अली बुक इन हिंदी पीडीऍफ़ (Hazrat Ali Book in Hindi PDF) से कुछ अंश –

जब हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मक्का से हिजरत करके मदीना चले आएं तो यह हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ही थे जिनके सुपुर्द आप अपना पूरा सामान कर गए। उन सामानों में दूसरों की अमानतें भी बहुत थीं। वे सब उनको दे गए और ताकीद कर गए कि जिसकी जो अमानत है, उस तक पहुंचा दें।

उस समय आप की उम्र 23 साल थी। फिर सन् 02 हि0 में प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी प्यारी बेटी हजरत फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा का विवाह हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु से किया, उस समय हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु की उम्र 25 साल थी और हजरत फ़ातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा की उम्र लगभग 19 साल थी।

विवाह का खर्च पूरा करने और महूर अदा करने के लिए हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपना ऊंट, अपनी दाल और कुछ दूसरे सामान चार सौ अस्सी दिरहम में बेच दिये। हज़रत फ़ातिमा से हज़रत अली के तीन बेटे हजरत हसन, हजरत हुसैन, हजरत मुहिसन रजियल्लाहु अन्हुम पैदा हुए, इसी तरह आपकी बेटियां जैनब और उम्मे कुलसूम रजियल्लाहु अन्हुमा भी पैदा हुईं।

हजरत अली का जीवन परिचय

  • हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने लड़कपन ही में इस्लाम ग्रहण कर लिया था।
  • आप बड़े निडर, वीर और उत्साही व्यक्ति थे
  • आपका पूरा जीवन इस पर गवाह है। सत्य अपनाने में आपने कभी किसी प्रकार का कोई संकोच नहीं किया।
  • आपकी वीरता जगप्रसिद्ध थी।
  • एक बार सन् 05 हि० में हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु एक लड़ाई में
  • प्रसिद्ध पहलवान उमर बिन अबीदूद के मुकाबले में निकले।
  • उमर को अपनी शक्ति और वीरता पर बड़ा गर्व था, वह इन्हें अपने मुकाबले में देखकर,
  • तुच्छ समझकर मुस्कराया और कहा, जा, मेरे मुकाबले से चला जा,
  • मुझे तुझ पर दया आती है, इसलिए कि मैं तेरी हत्या नहीं करना चाहता।
  • हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने निःसंकोच भाव से कहा,
  • लेकिन में तुम्हारी हत्या करना चाहता हूं और मुझे इस काम को करने में तनिक भी संकोच नहीं।
  • फिर आपने कुछ ही वारों में उस नामी पहलवान को ऐसा आहे हाथों लिया कि
  • उसका काम ही तमाम कर दिया। इसी तरह ख़ैबर की लड़ाई में आपने उच्च कोटि की वीरता का प्रदर्शन किया।
  • हुँदैबिया समझौते के मौक़े पर आप अल्लाह के रसूत सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के साथ थे।
  • समझौता करते समय जब संधि पत्र तैयार होने लगा तो
  • हुजुर सा अलैहि व सल्लम के नाम के बाद शब्द “रसूलाह भी लिख दिया गया,
  • इस पर विपक्ष ने आपत्ति की और कहा, हम तो उन्हें रसूल मानते ही नहीं,
  • हम त उनको मात्र मुहम्मद ही जानते हैं। प्यारे नबी शब्द को हटा देने पर तैयार हो गए
  • मगर हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु ने अपने हाथों से उसे काटने से इंकार कर दिया
  • और स्पष्ट शब्दों में कहा, मेरे हाथों ऐसा नहीं हो सकता।

हजरत अली ख़लीफ़ा बनने से पहले क्या है

मक्का विजय के अवसर पर प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम दस हजार सेना के साथ मक्का में दाखिल हुए। उस समय झंडा हजरत साद विन उबैदा के हाथ में था। वह जोर-जोर से नारे लगा रहे थे, आज मक्का में जीत का दिन है, जब हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह सुना तो बहुत नाराज हुए और फ़रमाया, “आज किसी से कोई पूछ-गठ नहीं की जाएगी। आपने झंडा साद से लेकर हजरत अली के सुपुर्द कर दिया।

  • हुनैन की लड़ाई के अवसर पर शत्रु के वाणों की वर्षा सहन न कर
  • पाने के कारण इस्लामी सेनाएं पीछे हटने लगीं। हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु
  • अपनी जगह पर क्रायम रहे और वीरतापूर्वक मुकाबला करते रहे।
  • तबूक की लड़ाई एक ऐसी लड़ाई है, जिसमें हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु शामिल न हुए थे,
  • इसलिए कि कुछ आवश्यक आवश्यकताओं के कारण
  • प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आपको मना कर दिया था।
  • ऐसा हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के आदेश के पालन में आपने किया था।
  • इसीलिए हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम करमाया था,
  • “तुम मेरे लिए हारून हो, अलावा इसके कि मेरे बाद कोई नबी नहीं।
  • तबूक की लड़ाई के बाद प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने
  • एक पार्टी को हज के लिए मक्का रवाना फ़रमाया। दल के नेता हजरत अबूबक रज़ियल्लाहु अन्हु थे।
  • प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को ध्यान आया कि आशंका है
  • मक्का वासी मुसलमानों के प्रति शत्रु-भाव दिखाएं।
  • आपने हजरत अली रजियल्लाहु अन्हु को दूत के रूप में हजरत अबूबक रजियल्लाहु अन्हु के पास भेजा

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