बौद्ध धर्म के 2500 वर्ष पीडीऍफ़ 2500 Years Of Buddhism Hindi

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बौद्ध धर्म के 2500 वर्ष इन हिंदी

बौद्ध धर्म का आरंभ तथा बुद्ध चरित

वैदिक यज्ञ-प्रधान धर्म प्राचीन भारत में आर्यों के मन पर हावी था। धीरे-धीरे वह स्वयं इतना कर्मकांडमय बन गया कि उसका विरोध शुरू हो गया। मुंडकोपनिषद् में कहा गया है कि यज्ञ भव-सागर से परलोक में ले जाने वाली नौका तो है, परंतु वह डगमगाती हुई और बिना भरोसे की नौका है।’

अन्यत्र यह भी कहा गया है कि यज्ञ से मिलने वाला पुण्य अल्पजीवी है। भारतीय तत्वज्ञान का आरंभ, नासदीय सूक्त’ पर जो स्वतंत्र भाष्य रचे गए, उनसे होता है। यज्ञ-याग की विधियों से हटकर चिंतकों का मन अन्य विषयों की ओर लगा। धीरे-धीरे आश्रम व्यवस्था. यानी वानप्रस्थ और संन्यास धर्म की ओर हमारे तत्वचिंतक झुके ।

यह मार्ग केवल ब्राह्मणों के लिए ही नहीं था। जनक जैसे क्षत्रिय भी विदेह बन सकते थे। आर्य विरक्तों के अतिरिक्त अनार्य साधु या वैरागी अवश्य रहे होंगे, जिनके उल्लेख नहीं मिलते। उदाहरणार्थ, मक्खली गोसाल ऐसे अनार्य विचारों का प्रतिनिधि था । अनार्य साहित्य में श्रमण शब्द बार-बार आता है।

निगंठ (जैन) और आजीव (आजीविक) जैसे पांच श्रमण गिनाए गए हैं। वैदिक विष्णु-सूक्त में दूसरे लोक की ओर यम-सूक्त में मरणोपरांत इस लोक में लौट आने की कल्पनाओं के बीज हैं। उपनिषदों में बार-बार इस लोक की दुखमयता और अमर जीवन की शाश्वत टोह के उल्लेख मिलते हैं।

बौद्ध धर्म के 2500 वर्ष पीडीऍफ़ इन हिंदी

पुस्ताक बौद्ध धर्म के 2500 वर्ष पीडीऍफ़ (2500 Years Of Buddhism Hindi) से कुछ अंश लिखा हुआ पढ़े –

  • भगवान बुद्ध की मृत्यु के दो वर्ष पूर्व उनके संघ को एक बड़े दुर्भाग्य का सामना करना पड़ा।
  • कोशल के राजा प्रसेनजित का एक शाक्य रानी से पुत्र था. जिसका नाम विडूडभ था।
  • अपनी माता के घर उसका नीच कुल में उत्पन्न होने के कारण अपमान किया गया।
  • उसने गुस्से में प्रतिज्ञा की कि मैं शाक्यों से बदला लेकर रहूंगा।
  • अपने पिता की मृत्यु के बाद उसने पूरी शाक्य जाति को तलवार के घाट उतार दिया।
  • जब वृद्ध बुद्ध ने ये समाचार सुने होंगे तो उनके दुख का ठिकाना न रहा होगा।
  • फिर… मी वह जगह-जगह घूमते रहे और शांति, विश्वबंधुत्व, प्रेम और पवित्रता का उपदेश देते रहे।
  • आम्रपाली नामक गणिका ने अपना आम्रवन संघ को दे दिया।

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