जख्मी सांप पीडीऍफ़ डाउनलोड Zakhmi Saanp PDF in Hindi zakhmi sanp book pdf IN HINDI ISLAMIC BOOK IN HINDI FREE DOWNLOAD PDF
हज़रते सय्यदुना अबू सईद खुदरी फ़रमाते हैं : एक नौ जवान सहाबी की नई नई शादी हुई थी। एक बार जब वोह अपने घर तशरीफ़ लाए तो देखा कि उन की दुल्हन घर के दरवाज़े पर खड़ी है, मारे जलाल के नेजा तान कर अपनी दुल्हन की तरफ़ लपके। वोह घबरा कर पीछे हट गई और (रो कर) पुकारी :
मेरे सरताज ! मुझे मत मारिये, मैं बे कुसूर हूं, ज़रा घर के अन्दर चल कर देखिये कि किस चीज़ ने मुझे बाहर निकाला है ! चुनान्चे वोह सहाबी अन्दर तशरीफ़ ले गए, क्या देखते हैं कि एक ख़तरनाक कुरार हा जहरीला सांप कुंडली मारे बिछोने पर बैठा है पर वार कर के उस को नेज़े में पिरो लिया। सांप ने तड़प कर उन को डस लिया। जख्मी सांप तड़प तड़प कर मर गया और वोह गैरत मन्द सहाबी भी सांप के जहर के असर से जामे शहादत नोश कर गए,
ग़ैरत मन्द इस्लामी भाइयो ! देखा आप ने ? हमारे सहाबए किराम किस क़दर बा मुरव्वत हुवा करते थे। उन्हें येह तक भी मन्जूर न था कि उन के घर की औरत घर के दरवाज़े या खिड़की में खड़ी रहे।
अपनी जौजा को बना संवार कर बे पर्दगी के साथ शादी होल में ले जाने वालों, बे पर्दगी के साथ स्कूटर पर पीछे बिठा कर फिराने वालों, शॉपिंग सेन्टरों और बाज़ारों में बे पर्दगी के साथ खरीदारी से न रोकने वालों के लिये इब्रत ही इब्रत है।
बे पर्दगी की होलनाक सज़ा
हज़रते सय्यदुना इमाम अहमद बिन हजर मक्की शाफ़ेई नक्ल फरमाते हैं: मे’राज की रात सरवरे काएनात, शाहे मौजूदात ॐ ने जो बाज़ औरतों के अज़ाब के होलनाक मनाज़िर मुला-हज़ा फ़रमाए उन में येह भी था कि एक औरत बालों से लटकी हुई थी और उस का दिमाग खौल रहा था । सरकार की खिदमते सरापा शफ़्क़त में अर्ज़ की गई कि येह औरत अपने बालों को ग़ैर मर्दों से नहीं छुपाती थी ।
तू ख़ुशी के फूल लेगी कब तलक?
तू यहाँ जिन्दा रहेगी कब तलक
पचास साठ सांप
1986 सि.ई. के जंग अख़बार में किसी दुख्यारी मां ने कुछ इस तरह बयान दिया था : मेरी सब से बड़ी लड़की का हाल ही में इन्तिकाल हुवा है, उसे दफ्न करने के लिये जब कब्र खोदी गई तो देखते ही देखते उस में
- पचास साठ सांप जम्अ हो गए!
- दूसरी कब्र खुदवाई गई उस में भी वोही सांप आ कर कुंडली मार कर एक दूसरे पर बैठ गए।
- फिर तीसरी कुन तय्यार की उस में उन दोनों कब्रों से ज़ियादा सांप थे।
- सब लोगों पर दहशत सुवार थी, वक्त भी काफी गुज़र चुका था,
- नाचार बाहम मश्वरा कर के मेरी प्यारी बेटी को सांपों भरी
- कब्र में दफ्न कर के लोग दूर ही से मिट्टी फेंक कर चले आए।
- मेरी मईमा बेटी के अब्बाजान की कब्रिस्तान से मकान आने के बाद हालत बहुत ख़राब हो गई
- और वोह ख़ौफ़ के मारे बार बार अपनी गरदन झटकते थे।
- दुख्यारी मां का मजीद बयान है कि
- मेरी बेटी यूं तो नमाज व रोज़ा की पावन्द थी मगर वोह फ़ेशन किया करती थी।
- मैं उसे महब्बत से समझाने की कोशिश करती थी
- मगर वोह अपनी आखिरत की भलाई की बातों पर कान धरने के बजाए उलटा मुझ पर बिगड़ जात
- और मुझे जलील कर देती थी। अफ़सोस मेरी कोई बात मेरी नादान मॉडर्न बेटी की समझ में न आई।