जकात फितरा सदका पीडीऍफ़ Zakat Fitrah Sadaqah

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बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहिम

ज़कात रोज़गार की बराबरी के लिए.

सदका का लफ्ज जकात के लिये भी इस्तेमाल होता हे जिस्का अदा करना जरूरी है, और यहां यही मुराद हे और उस्का इतलाक [जारी होना] हर उस माल पर भी होता है जो खुद आदमी अपनी खुशी से अल्लाह के रास्ते मे खर्च करता हे इस हदीस का लफ्जरहु” [लौटाया जायेगा] साफ साफ बताता हे कि जकात जो मालदारो से वसूल की जायेगी वो असल मे सोसाईटी के गरीबो और जरूरतमंदो का हक हे जो उन्हे दिलवाया जायेगा. बुखारी, मुस्लीम; रिवायत का खुलासा]

ज़कात अदा ना करने का अंजाम.

रसूलुल्लाह का फरमान हे कि जिस शख्स को अल्लाह ने माल दिया और फिर उसने उस्की जकात नही अदा की उस्का माल कयामत के दिन बहुत ही जेहरीले साप की शक्ल का हो जायेगा जिस्के सिर पर दो काले नुकते होगे [ये बहुत ही जहरीले होने की निशानी है। और वो उसके गले का तौक बन जायेगा, फिर उसके दोनो जबड़ो को ये साप पकडेगा और कहेगा मे तेरा माल हूं, मे तेरा खजाना हूं

फिर रसूलुल्लाह ने कुरान की ये आयत पढी ‘आले इमरान /१८०’ तरजुमा यानी वो लोग जो अपने माल को खर्च करने मे कनजूसी करते हे वो ये ना सोचे कि उनकी ये कजूसी उन्के हक में बेहतर होगी बल्की वो बुरी होगी. उनका ये माल कयामत के दिन उनके गले का तौक बन जायेगा. यानी वो उनके लिये तबाही व बरबादी का सबब होगा. बुलारी रिवायत का खुलासा

ज़कात अदा ना करना माल की बरबादी का सब्ब हैं.

आयशा (रदी) फरमाती हे की मेने रसूलुल्लाह को ये फरमाते सुना है कि जिस माल मे से जकात ना निकाली जाये और वो उसी मे मिली जुली रहे तो वो माल को तबाह करके छोडती है.

  • तबाह करने से मुराद ये नही हे कि
  • जो कोई शख्स जकात ना दे और खुद ही खाये
  • तो हर हालत मे उस्का पूरा सरमाया तबाह हो जायेगा
  • बल्की तबाही से मुराद ये हे कि वो माल जिस से फायदा उठाने का उस्को हक ना था
  • और जो गरीबो ही का हिस्सा था उसने उसे खाकर अपने दीन व इमान को तबाह किया.
  • इमाम अहमद बिन हबल ने यही तशरीह की हे और ऐसा भी देखने मे आया हे कि
  • जकात मार खाने वाले का पूरा सरमाया अचानक तबाह हो गया हे. (मिश्कात, रिवायत का खुलासा

अनाज की ज़कात. – जकात फितरा सदका पीडीऍफ़

रसूलुल्लाह ने फरमाया जो जमीन बारिश के पानी से या बहते चश्मे से सच्ची माती हो या दरिया के करीब होने की वजह से पानी देने की जरूरत ना पडती हो, उन्की पैदावार का दसवा हिस्सा जकात के तौर पर निकाला जायेगा और जिनको मजदूर लगा कर सीचा जाये उनमे बीसवा हिस्सा है.

सदक ए फित्र का मकसद – जकात फितरा सदका पीडीऍफ़

रसूलुल्लाह का फरमान हे कि सदक-ए- फित्र जो शरीयत मे वाजिब किया गया हे उस्के अन्दर दो खूबियां काम कर रही हे, एक ये कि रोजेदार से रोजा की हालत में कोशिश के बावजूद जो कमी और कमजोरी रह जाती हे उस माल के जरीये उस्की तलाफी हो जाती है, और दूसरा मकसद ये हे कि जिस दिन सारे मुसलमान ईद की खुशी मना रहे होते हे उस दिन सोसाइटी के गरीब लोग फाका से ना रहे, बल्की उनकी खुराक का कुछ ना कुछ इन्तेजाम हो जाये, सायद यही वजह हे कि घर के सारे ही लोगो पर फित्र वाजिब किया गया हे और इद की नमाज से पहले देने को कहा गया है. [अबू दाउद, रिवायत का खुलासा

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