तलाक का तरीका इन इस्लाम Talaq Dene Ka Sahi Tarika PDF HINDI तलाक-ए-अहसन क्या है तलाक पीडीऍफ़ बुक फ्री डाउनलोड – dawateislami book pdf
इस्लाम की नज़र में तलाक़ अगरचे एक नागवार और नापसंदीदा अमल है; लेकिन ऐसे हालात में भी अगर तलाक की बिल्कुल मुमानित कर दी जाए तो यह निकाह दोनों के लिए सख्त फितना और परेशानी का सबब बन जाएगा। लेहाजा ऐसी मजबूरी में शरीअते इस्लामी ने तलाक की गुन्जाइश दी है।
क्योंकि निकाह के बाद पैदा होने वाली मुश्किलात सख्त दुश्वारी व तंगी की हालत से निकलने का पुर अमन और पुर सुकून रास्ता सिर्फ तलाक है, इसका कोई, मुतवादिल नहीं है। शरीअते इस्लामी की तरफ से ऐसे हालात में तलाक रहमत पर मन्नी एक कानून है, जिसमें मर्द को इजाजत है कि वह बीवी को तलाक देकर दूसरी औरत से निकाह कर ले, इसी तरह औरत भी निकाह से आजाद हो कर चाहे तो दूसरी जगह अपना निकाह कर ले।
तलाक देने का सही और अहसन तरीका
इस्लामिक किताब तलाक का तरीका इन इस्लाम ( Talaq Dene Ka Sahi Tarika PDF HINDI ) – से कुछ अंश लिखा हुआ पढ़े –
जब हालात यहां तक पहुंच जाएं कि तलाक देने ही में शौहर और बीवी दोनों के लिए राहत हो, इसके बगैर दोनों के लिए खुशगवार जिन्दगी गुजारना मुमकिन न हो तो ऐसी हालत में भी शरीअत ने मर्द को आज़ाद नहीं छोड़ा कि जिस तरह चाहे और जितनी चाहे तलाक देदे बल्कि उसके हदूद और जावते तय किए, जिन से इस्लाम के कुवानीन की जामिय्यत और उनका ऐन फितरत के मुताबिक होना खूब वाजेह होता है।
चुनाचे तलाक देने का सही और अहसन तरीका यह है कि:
- बीवी को साफ लफजों में सिर्फ एक तलाक दी जाए, शौहर बीवी सेक हे “मैंने तुझे तलाक दी”।
- तलाक़ उस वक़्त दी जाए जब औरत पाक हो यानी: उसको माहवारी न आ रही हो
- और उस पाकी के जमाने में सुहबत न की गई हो
- क्योंकि माहवारी के दौरान तलाक देना गुनाह है और अगर सुहबत करने के बाद तलाक दी जाएगी तो मुमकिन है
- हमल ठहर जाने की वजह से उसको इद्दत लम्बी हो जाए, जो औरत के लिए मशक्कत और परेशानी का सबब है।
तलाक का इस्लामी तरीका – तलाक का तरीका
तलाक देने का सबसे बेहतर तरीका यही है, अगर लोग तलाक देने के इस तरीके को इख़्तियार करें तो तलाक़ की वजह से पेश आने वाले मसाइल पैदा न हो। इसलिए कि आमतौर पर वक्त तकलीफ और आरजी इखतिलाफ़ की वजह से गुस्से में आदमी तलाक दे डालता है: लेकिन बाद में दोनों को इस का शदीद एहसास होता है
और तलाक के बावजूद एक दूसरे की मुहब्बत में कोई कमी पैदा नहीं होती बल्कि पहले से ज्यादा उसमें इजाफा हो जाता है; फिर दोनों परेशान होते हैं और दोबारा इन्दिवाजी जिन्दगी काइम करना चाहते है. दोनों के खानदान वालों की भी यही ख्वाहिश रहती है और अगर सोच समझ कर तलाक दो गई हो तो भी मजकूरह तरीके के खिलाफ इख्तियार करने में मुख्तलिफ किस्म की परेशानियां पेश आती हैं।
- इन दुश्वारियों का हल यही है कि बदर्जा मजबूरी सिर्फ एक तलाक दी जाए
- इसलिए कि एक तलाक देने की सूरत में शौहर के लिए इद्दत के अन्दर अन्दर ही रूजु
- (यानी दोवारा निकाह के बगैर बीवी को अपने निकाह में वापस लेने) का इख़्तियार रहता है।
- और अगर शौहर ने इद्दत के अन्दर अन्दर रूजु नहीं किया तो
- इद्दत गुजरने के बाद बीवी अगरचे उसके निकाह से निकल जाती है
- लेकिन दोनों के लिए एक दूसरे के साथ नए सिरे से दोबारा निकाह करने की गुंजाइश रहती है।
- इस सूरत में हलाला शरई शर्त नहीं है।
इस्लाम में तीन तलाक़ क्यों और कैसे?
- इससे पहले तलाक़ देने का सब से बेहतर और अफज़ल तरीका बयान किया जा चुका है
- कि मजबूरी और सख्त जरूरत के वक्त बीवी की पाकी की हालत में
- जिसमें उसके साथ सुहबत न की हो सरीह लफड़ों में एक तलाक देनी चाहिए।
- लेकिन बसा औकात आदमी तीन तलाक दे कर
- रिश्त-ए-निकाह इस तरह ख़त्म करना चाहता है कि
- उसके लिए रूजु औरत जदीद निकाह का मौका आइंदा बाकी न रहे।
- ऐसी सूरत में शरीअते इस्लामी की तालीम यह है कि एक बारगी तीन तलाक न दी जाए
- बल्कि पाकी की हालत में एक तलाक देकर गौर व फिक्र किया जाए। अगर हालात सही न हो सकें: