अकीदा आखिरत पीडीऍफ़ Aqeeda Akhirat Quran ki Roshni

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आखिरत के इन्कार के बाद खुदा को मानना दीने इस्लाम में कोई मा’नी नहीं रखता क्यूं कि आखिरत को मुस्तब्द समझना सिर्फ आखिरत ही का इन्कार नहीं बल्कि खुदा की कुदरत और हिक्मत का भी इन्कार है,

कमज़र्फ लोग जिन्हें दुन्या में कुछ शानो शौकत हासिल हो जाती हैं हमेशा इस ग़लत फ़हमी में मुब्तला रहते हैं कि उन्हें इसी दुन्या में जन्नत नसीब हो चुकी है और अब वोह कौन सी जन्नत है जिसे हासिल करने की वोह फ़िक्र करें ?

  • इन्कारे आखि़रत वोह चीज़ है जो किसी शख्स, गुरौह या
  • क़ौम को मुजरिम बनाए बिगैर नहीं रहती, अख्लाक की खराबी इस का लाज़िमी नतीजा है
  • और तारीखे इन्सानी शाहिद है कि ज़िन्दगी के इस न-ज़रिय्ये को जिस क़ौम ने इख़्तियार किया है
  • वोह आखिर कार तबाह हो कर रही, आख़िरत से इन्कार दर अस्ल खुदा और
  • उस की कुदरत और हिक्मत से इन्कार है और आखिरत से इन्कार वोही लोग करते हैं।

अकीदा आखिरत Aqeeda e Akhirat

इन्कारे आखिरत के बाद ख़ुदा को मानना बे माना है – अकीदा आखिरत (Aqeeda e Akhirat) के कुछ अंश

आखिरत के इन्कार के बाद खुदा को मानना दीने इस्लाम में कोई मा’नी नहीं रखता क्यूं कि आखिरत को मुस्तब्अद(2) समझना सिर्फ़ आखि़रत ही का इन्कार नहीं बल्कि खुदा की कुदरत और हिक्मत का भी इन्कार है

कमज़र्फ लोग जिन्हें दुन्या में कुछ शानो शौकत हासिल हो जाती है हमेशा इस गलत फहमी में मुब्तला रहते हैं कि उन्हें इसी दुन्या में जन्नत नसीब हो चुकी है और अब वोह कौन सी जन्नत है जिसे हासिल करने की वोह फिक्र करें ?

  • तौहीद के बाद दूसरी सिफ्त जो हर ज़माने में तमाम अम्बिया पर मुन्कशिफ की गई
  • और जिस की तालीम देने पर वोह मामूर किये गए वोह आखिरत पर यकीन रखना था,
  • क्यूं कि दीन का पहला बुन्यादी उसूल येह है कि हमारा रब सिर्फ अल्लाह है
  • जिस की इबादत की जानी चाहिये और दूसरा बुन्यादी उसूल आखिरत पर यकीन रखना है
  • जिसे सू-रतुल ब-क़रह 2 की पहली ही आयत में अलत्तरतीब इस तरह फ़रमाया गया है कि
  • तर-ज-मए कन्जुल ईमान : वोह जो वे देखे ईमान लाएं)
  • और (2) 69 (तर-ज-मए कन्जुल ईमान : और आखिरत पर यकीन रखें) और
  • ऐसे ही लोगों को इन ही आयात में मुत्तक़ीन (डर वाले) के लकब से नवाज़ा गया है
  • और बुलन्द मर्तबा किताब (कुरआन) ऐसे ही डर वालों की हिदायत के लिये नाज़िल फ़रमाई गई है।

अकीदा आखिरत पीडीऍफ़ Aqeeda e Akhirat

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