हजरत उमर किताब हिंदी में Umar Bin Khattab Book in Hindi PDF Hazrat Umar Farooq Ka Insaaf in Hindi Umar Farooq Ka Waqia PDF ISLAMAIC BOOK IN HINDI PDF
हजरत उमर किताब हिंदी में Umar Bin Khattab Book in Hindi PDF Hazrat Umar Farooq Ka Insaaf in Hindi Umar Farooq Ka Waqia PDF ISLAMAIC BOOK IN HINDI PDF
लड़कपन और जवानी – Umar Bin Khattab
हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु का लड़कपन कुछ असाधारण न था। आम लड़कों की तरह खेलना-कूदना और परम्पराओं के अनुसार जीवन बिताना ही लड़कपन की मुख्य बात थी। बाद में उन्होंने लिखना-पढ़ना भी सीख लिया था।
जब हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु जवान हुए तो जर्जान और मक्का के आसपास के क्षेत्र में अपने पिता के ऊंट चराने लगे। उस समय ऊंटों का चराना कुरैश के जवानों के लिए कोई निंदनीय बात न थी, बल्कि बहुधा इसमें भी लोग गर्व का अनुभव करते थे।
हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु अपनी जवानी में अपने तमाम साथियों के मुक़ाबले में अधिक शक्ति रखते थे और कोई भी जवान उनके स्वास्थ्य और उनके क़द को न पहुंचता था। लम्बे बहुत थे। एक बार औफ़ बिन मालिक ने कुछ लोगों को इकट्ठा देखा, जिनमें एक व्यक्ति सबसे ऊंचा था, इतना ऊंचा कि निगाहें उस पर टिकती न थीं, पूछा, ‘यह कौन है?’ जवाब मिला, ‘खत्ताब के बेटे उमर।’
हजरत उमर का इतिहास – Umar Bin Khattab
हजरत उमर का इतिहास – Umar Bin Khattab PDF BOOK – हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु का रंग सफेद था, जिस पर लाली छायी रहती थी। टांगें लम्बी होने और जिस्म में ताक़त होने से वे बहुत तेज़ चलते थे और चाल में यह तेज़ी उनकी आदत-सी बन गई थी।
अभी जवानी का आरम्भ ही था कि उन्होंने व्यायाम में महारत हासिल कर ली, मुख्य रूप से पहलवानी में और घुड़सवारी में, जब हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु मुसलमान हुए तो एक व्यक्ति किसी चरवाहे से मिला और बताने लगा- तुम्हें मालूम है वह शक्तिशाली व्यक्ति मुसलमान हो गया?” ‘वही, जो उकाज़ के मेले में कुश्ती लड़ता था?’ चरवाहे ने पूछा।
घोड़ों की सवारी हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु का बड़ा प्रिय काम था, यहां तक कि इसमें उन्हें जीवन भर दिलचस्पी रही। जब वह ख़्तीफ़ा थे उसी समय की यह घटना है कि एक दिन वह घोड़े पर सवार हुए। एक घोड़ा हवा से बात करने लगा और कई रास्ता चलने वाले उसकी चपेट में आते-आते रह गए।
जिस तरह हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु पहलवानी और घुड़सवारी में माहिर थे, वैसे ही उनकी रुचि कविता में भी थी। वह उकाज़ और उसके अलावा दूसरी जगह के कवियों की कविताएं सुनते। जो पद पसन्द आते, उन्हें कंठस्थ कर लेते और उचित अवसरों पर रस ले-लेकर पढ़ते। अरब की वंशावालियों को याद रखने में तो पारंगत थे। यह गुण उन्हें अपने बाप से मिला था।
Hazrat Umar Farooq History In Hindi PDF
Hazrat Umar Farooq History In Hindi PDF – हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु बातचीत करने और मन की बात को दूसरों तक पूरे प्रभाव के साथ पहुंचा देने में बड़े दक्ष थे। इसलिए इन्हें कुरैश का दूत बनाकर दूसरे क़बीलों को भेजा जाता और आपसी झगड़ों में उनके निर्णय मान लिए जाते थे।
हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु मक्का के दूसरे नवजवानों की तरह, बल्कि उनसे ज़्यादा ही शराब के रसिया थे और उन्हें अरब-सुन्दरियों से प्रेम करने और प्रेम की पेंगें बढ़ाने का बड़ा शौक रहा करता । ये दोनों रुचियां हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ही तक सीमित नहीं थीं, बल्कि कुरैशी नवजवानों की सामान्य रुचि ही यही थी।
जब हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की जवानी अपनी रंगीनियों के साथ विदा होने लगी
तो उनके मन में विवाह की इच्छा पैदा हुई। संतान अधिक प्राप्त करने के लिए
बहु पलित्व विवाह उनकी वंश-परम्परा थी। इसलिए उन्होंने भी जीवन में 9 औरतों से विवाह किया,
जिनसे 12 बच्चे पैदा हुए- आठ लड़के और चार लड़कियां ।
हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु अपने बाप की तरह बड़े सख्त और तीखे स्वभाव के थे।
जवानी में यह स्वभाव और भी स्पष्ट था। इसलिए जब मुसलमानों का
अमीर (खलीफा) उन्हें बनाया गया तो उनकी सबसे पहली दुआ –
‘हे अल्लाह! मैं सख्त हूं, मुझे नर्म बना।
इस प्रकार अभी हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु 26-27 वर्ष ही के थे
कि हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इस्लाम का आदान शरू कर दिया।
आरम्भ में एक अल्हड़ नवजवान की तरह उन्हें इस्लाम से कोई दिलचस्पी न थी,
इससे न लगाव था, न वैर ही, लेकिन इस नई ‘बात’ से उन्हें जिस ‘हलचल’ का आभास हो रहा था,
उससे उन्हें कुढ़न जरूर रहती और वे मन डी मन कुढ़ते रहते।
इस्लाम के विरोधी के रूप में – हजरत उमर
इस्लाम के विरोधी के रूप में – हजरत उमर
इस्लामी आह्वान ज्यों-ज्यों फैलता रहा, हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की कुढ़न भी बढ़ती रही,
यहां तक कि वे इस्लाम के कट्टर शत्रु हो गए।
इस्लाम में शक्ति जिस तेज़ी से पैदा हो रही थी, उमर का विरोध भी बढ़ता जा रहा था,
वहां तक कि इस्लाम का फैलना और बढ़ना, उनकी आंखों में बुरी तरह खटकने लगा।
इसका कारण यह न था कि इससे उन किसी पद-प्रतिष्ठा पर आंच आ रही थी,
उनका इस्लाम से वैर केवल इस कारण हो गया था कि वे क़ुरैश को एक शक्तिशाली क़बीला बनाए रखना चाहते थे।
हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु का वैमनस्य हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से निरुद्देश्य भी न था,
उन्हें खूब मालूम था कि मक्का में आप से अधिक ज्ञान रखने वाला सच्चा
और ईमानदार व्यक्ति कोई नहीं, फिर भी उनका विचार था कि
अगर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की बातें मानी जाती रहीं
और इस्लाम फैलता चला गया तो मक्का की व्यवस्था और शान्ति छिन्न-भिन्न हो जाएगी।
वह मक्का में शान्ति देखना चाहते थे, कुरैश को एक लड़ी में पिरोया हुआ देखना चाहते थे।
उनके नज़दीक इस्लाम के फैलने का अर्थ था,
कुरैश की एकता का नष्ट होना, मक्का की ‘मान-मर्यादा” का दो कौड़ी का हो जाना
और कुरेश क़बीले का बेजान होकर अरब के दूसरे क़बीले का ग्रास बन जाना,
मानो आज की परिभाषा में हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु को राष्ट्रीयता प्रिय थी
और वह राष्ट्र पर धर्म और सिद्धांत को बलि दे देना ही पसन्द करते थे।
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