विवेक चूड़ामणि गीता प्रेस गोरखपुर PDF Vivek Chudamani

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ब्रह्मनिष्ठाका महत्त्व

जन्तूनां नरजन्म दुर्लभमतः पुंस्त्वं ततो विप्रता

तस्माद्वैदिकधर्ममार्गपरता विद्वत्त्वमसात्परम् । ।

आत्मानात्मविवेचनं स्वनुभवो ब्रह्मात्मना संस्थिति-

मुक्तिनों शतकोटिजन्मसु कृतैः पुण्यैर्विना लभ्यते ॥ २ ॥

जीवोंको प्रथम तो नरजन्म ही दुर्लभ है, उससे भी पुरुषत्व और उससे भी ब्राह्मणत्व का मिलना कठिन है; ब्राह्मण होनेसे भी वैदिक धर्मका अनुगामी होना और उससे भी विद्वत्ताका होना कठिन है [ यह सब कुछ होनेपर भी ] आत्मा और अनात्माका विवेक, सम्यक् अनुभव, ब्रह्मात्मभावसे स्थिति और मुक्ति—ये तो करोड़ों जन्मोंमें किये हुए शुभ कर्मों के परिपाकके बिना प्राप्त हो ही नहीं सकते ।

दुर्लभं त्रयमेवैतद्देवानुग्रहहेतुकम् ।

मनुष्यत्वं मुमुक्षुत्वं महापुरुषसंश्रयः ॥ ३ ॥

भगवत्कृपा ही जिनकी प्राप्तिका कारण है वे मनुष्यत्व, मुमुक्षुत्व (मुक्त होनेकी इच्छा) और महान् पुरुषोंका सङ्ग ये तीनों ही दुर्लभ हैं।

लब्ध्वा कथञ्चिन्नरजन्म दुर्लभं

तत्रापि पुंस्त्वं श्रुतिपारदर्शनम् ।

यः स्वात्ममुक्तौ न यतेत मूढधीः

स ह्यात्महा स्वं विनिहन्त्यसद्ग्रहात्॥ ४ ॥

विवेक चूड़ामणि गीता प्रेस गोरखपुर

पुस्तक विवेक चूड़ामणि गीता प्रेस गोरखपुर PDF (Vivek Chudamani FREE DOWNLAD) से कुछ अंश हिंदी में लिखा हुआ – प्राणमय कोश

कर्मेन्द्रियैः पश्चमिरञ्चितोऽयं

प्राणो भवेत्प्राणमयस्तु कोशः ।

येनात्मवानन्नमयोऽन्नपूर्णः

प्रवर्ततेऽसौ सकलक्रियासु ॥१६७॥

पाँच कर्मेन्द्रियोंसे युक्त यह प्राण ही प्राणमय कोश कहलाता है, जिससे युक्त यह अन्नमय कोश अन्नसे तृप्त होकर समस्त कर्मोंमें प्रवृत्त होता है।

नैवात्मापि प्राणमयो वायुविकारो

गन्तागन्ता वायुवदन्तर्वहि रेषः ।

यस्मात्किञ्चित्कापि न वेत्तीष्टमनिष्टं

स्वं वान्यं वा किञ्चन नित्यं चरतन्त्रः ॥ १६८ ॥

प्राणमय कोश भी आत्मा नहीं है, क्योंकि यह वायुका विकार है, वायुके समान ही बाहर-भीतर जाने-आनेवाला है और नित्य परतन्त्र है । यह कभी अपना इष्ट-अनिष्ट, अपना- पराया भी कुछ नहीं जानता ।

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PDF NAMEVivek Chudamani
LANGAUGEHINDI
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PAGE188
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CATEGORYGITA PRESS PDF
CREDITGKP HINDI
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