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नित्य कर्म पूजा प्रकाश
पुस्तक नित्य कर्म पूजा प्रकाश गीता प्रेस गोरखपुर से कुछ अंश लिखा हुआ पढ़े यहाँ –
नित्यकर्म-पूजाप्रकाश
लम्बोदरं परमसुन्दरमेकदन्तं रक्ताम्बरं त्रिनयनं परमं पवित्रम् । उद्यदिवाकरनिभोज्ज्वलकान्तिकान्तं विघ्नेश्वरं सकलविघ्नहरं नमामि ॥
- गृहस्थके नित्यकर्मका फल-कथन
- अथोच्यते गृहस्थस्य नित्यकर्म यथाविधि । यत्कृत्वानृण्यमाप्नोति दैवात् पैत्र्याच्च मानुषात् ॥
- (आश्वलायन) शास्त्रविधिके अनुसार गृहस्थके नित्यकर्मका निरूपण किया जाता है
- जिसे करके मनुष्य देव-सम्बन्धी, पितृ-सम्बन्धी और मनुष्य-सम्बन्धी तीनों ऋणोंसे मुक्त हो जाता है।
- जायमानो वै ब्राह्मणस्त्रिभिर्ऋणवा जायते’ ( तै० सं० ६ । ३ । १० । ५) के अनुसार
- मनुष्य जन्म लेते ही तीन ऋणोंवाला हो जाता है। उससे अनृण होनेके लिये शास्त्रोंने नित्यकर्मका विधान किया है।
- नित्यकर्ममें शारीरिक शुद्धि, सन्ध्यावन्दन, तर्पण और देव-पूजन प्रभृति शास्त्रनिर्दिष्ट कर्म आते हैं।
- इनमें मुख्य निम्नलिखित छः कर्म बताये गये हैं-
- सन्ध्या स्नानं जपश्चैव देवतानां च पूजनम् । वैश्वदेवं तथाऽऽतिथ्यं षट् कर्माणि दिने दिने ॥
- (बृ० प० स्मृ० १ । ३९) मनुष्यको स्नान, सन्ध्या, जप, देवपूजन, बलिवैश्वदेव और अतिथि- सत्कार
- ये छः कर्म प्रतिदिन करने चाहिये।
नित्य कर्म पूजा प्रकाश गीता प्रेस गोरखपुर
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नित्यकर्म-पूजाप्रकाश
30 ब्राह्म मुहूर्तमें जागरण – सूर्योदयसे चार घड़ी (लगभग डेढ़ घंटे) पूर्व ब्राह्ममुहूर्तमें ही जग जाना चाहिये। इस समय सोना शास्त्रमें निषिद्ध हैं।
प्रातः जागरणके पश्चात् स्नानसे पूर्वके कृत्य
प्रातःकाल उठनेके बाद स्नानसे पूर्व जो आवश्यक विभिन्न कृत्य हैं, शास्त्रोंने उनके लिये भी सुनियोजित विधि-विधान बताया है। गृहस्थको अपने नित्य-कर्मोक अन्तर्गत स्नानसे पूर्वके कृत्य भी शास्त्र-निर्दिष्ट- पद्धतिसे ही करने चाहिये; क्योंकि तभी वह अग्रिम षट्-कर्मोक करनेका अधिकारी होता है। अतएव यहाँपर क्रमशः जागरण-कृत्य एवं स्नान-पूर्व- कृत्योंका निरूपण किया जा रहा है।
करावलोकन – आँखोंके खुलते ही दोनों हाथोंकी हथेलियोंको देखते हुए निम्नलिखित श्लोकका पाठ करे- –
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती । करमूले स्थितो ब्रह्मा प्रभाते करदर्शनम् ॥
(आचारप्रदीप) ‘हाथके अग्रभागमें लक्ष्मी, हाथके मध्यमें सरस्वती और हाथके मूलभागमें ब्रह्माज्ञी निवास करते हैं, अतः प्रातःकाल दोनों हाथोंका अवलोकन करना चाहिये ।’
१- ब्राह्म मुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी । तां करोति द्विजो मोहात् पादकृच्छ्रेण शुद्ध्यति ॥