देवी भागवत की प्रमुख कथाएँ Devi Bhagavat Ki Pramukh Kathayen PDF DOWNLOAD devi bhagwat ki pramukh kathayen gita press gorakhpur देवी भागवत की प्रमुख कथाएँ PDF –
भगवान् विष्णुके हयग्रीवावतारकी कथा
एक समयकी बात है। इीयनामका एक पराक्रमी दैत्य हुआ। उसने सर नदीके तटपर जाकर भगवती कालिये बड़ी कठोर तपस्या की। वह बहुत दिन बिना कुछ खाये भगवती एकाक्षर महामारता था। उसकी इन्द्रियाँ उसके हो चुकी सभी उसने कर दिया था। उसकी कठिन तपस्या प्रसन्न होकर भगवतीने उसे तामसी शतके रूपमें दर्शन दिया। भगवती महामाया उससे कहा- महाभागा तुम्हारी तपस्या सफल हुई। मैं तुमपर परम प्रसन्न हूँ। तुम्हारी जो भी इच्छा हो मैं उसे पूर्ण करनेके लिये तैयार है। वत्स वर मांगो।”
भगवती दया और प्रेमसे ओतप्रोत वाणी सुनकर न रहा। उसके नेत्र आरके असे भर गये। उसने भगवति करते हुए कहा- देवि! आपको नमस्कार है। आप महामाया है। सृष्टि स्थिति और संहार करना आपका स्वाभाविक गुण है। आपकी कृपासे कुछ भी असम्भव नहीं है। यदि आप मुझपर प्रसन्न है तो मुझे अमर होनेका वरदान देनेकी कृपा करें।”
देवीने कहा-‘दैत्यराज संसारमें जिसका जन्म होता है, उसकी मृत्यु है। प्रकृति इस विधान कोई नहीं बच सकता है। किसीका सदाके लिये अमर होना असा अ देवताओंको भी पुण्य समाप्त होनेपर मृत्युलोक जाना पड़ता है। अत: तुम अमात्यके कोई और कर बोला-
भगवान् विष्णुके हयग्रीवावतारकी कथा
अच्छा तो ही हाथों ही मेरी मृत्यु हो दूसरे मुझे न मार सकें। मेरे मनकी यही अभिलाषा है। आप उसे पूर्ण करनेकी कृपा करें।” “ऐसा ही हो” यह कड़कर भगवती अन्तर्धान हो गयीं। हवग्रीव असीम आनन्दका अनुभव करते हुए अपने घर चला गया। वह दूर देवीके बरके प्रभावसे अजेय हो गया। त्रिलोकी कोई भी ऐसा नहीं है. जो उस टुको बार सके।
- उसने ब्रह्माजी बेटोंको फोन लिया और देवताओं तथा मुनियोंको सताने लगा।
- यज्ञादि कर्म बन्द हो गये और सृष्टिको व्यवस्था लगी ब्रह्मादि देवता भगवान् विष्णुके पास गये.
- किन्तु योगनिद्रानिम थे। उनके धनुषकी डोरी बड़ी हुई थी।
- ब्रह्माजीने उनको जानेके लिये यात्री नामक एक कौड़ा उत्पन्न किया।
- ब्रह्माजीकी प्रेरणासे उसने धनुषकी प्रत्यंचा काट दी। उस समय बड़ा भयंकर शब्द हुआ
- और भगवान् विष्णुका मस्तक कटकर अदृश्य हो गया ह
- भगवान धड़को देखकर देवताओंके दुःखको सीमा न रही।
- सभी लोगोंने इस विचित देखकर भगवतीकी स्तुति की। भगवती प्रकट हुई।
- उन्होंने कहा-‘देवताओं का करो। मेरी कृपा तुम्हारा ही होगा।
- ब्रह्माजी एक घोड़ेका मस्तक काटकर ब इसका ग्रीवावतार होगा।
- वे उसी रूपमें दुष्ट हयग्रीव का करेंगे।” ऐसा कहकर भगवती अनधन हो गयीं।
- भगवतीके कथनानुसार उसी क्षण ब्रह्माजीने एक घोड़ेका मस्तक उतारकर भगवान्के धड़ जोड़ दिया।
- भगवती कृपाप्रसादसे उसी क्षण भगवान् विष्णुका हो गया। फिर भगवदैत्यसे भयानक युद्ध हुआ।
- अन्तमें भगवान्के हाथों की मृत्यु हुई मारकर भगाने वेदोंको ब्रह्माजीको पुनः समर्पित कर दिया
- और देवताओं तथा मुनियोंका संकट निवारण किया।