ब्रह्मांड पुराण गीता प्रेस गोरखपुर PDF Brahma Puran in Hindi

ब्रह्मांड पुराण गीता प्रेस गोरखपुर PDF Download Brahma Puran Hindi DOWNLOAD: ब्रह्माण्डपुराण को भी अट्ठारह महापुराण में से एक माना गया है इस पुराण को वायवीय पुराण या ‘वायवीय ब्रह्माण्ड’ के नाम से भी जाना जाता है अगर आप ब्रह्मांड पुराण गीता प्रेस गोरखपुर की PDF DOWNLOAD करना चाहते है तो अंत में डाउनलोड लिंक शेयर किया गया है

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ब्रह्मांड पुराण में क्या लिखा है

धार्मिक पुस्तक ब्रह्मांड पुराण में चारों युग का वर्णन मिलता है भारतवर्ष के बारें में इस पुराण से जानकारी मितली कि आर्यों की कृषि भूमि रही है ब्रह्मांड पुराण में भगवान परशुराम जी की अवतार की कथा भी विस्तार रूप में दी गई है। राजाओं के गुणों एवं अवगुणों को निष्पक्ष रुप से प्रस्तुत किया गया है। ब्रह्मांड पुराण में चोरी करना को बहुत ही पाप बताया गया है और कहा गया है कि ब्राह्मणों एवं देवी-देवताओं के आभूषणों को चोरी करने वाले व्यक्ति को तत्काल में सजा मिलती है। ब्रह्मांड पुराण में यह भी बताया गया है कि चोरी करने वाले इंसान को तत्काल उसी वक्त मृत्यु मिल सकती है।

संक्षिप्त ब्रह्म पुराण गीता प्रेस गोरखपुर PDF

इस पुराण को आपको पूरा पढ़ने के लिए पीडीऍफ़ डाउनलोड करना चाहिए हम यह ब्रह्म पुराण का संक्षिप्त वर्णन जो पुस्तक में लिखा है वह शेयर कर रहे है –

गणेशब्रह्मेशसुरेशशेषाः

सुराश्च सर्वे मनवो मुनीन्द्राः ।

सरस्वती श्रीगिरिजादिकाश्च

नमन्ति देव्यः प्रणमामि तं विभुम् ॥ १ ॥

गणेश, ब्रह्मा, महादेवजी, देवराज इन्द्र, शेषनाग आदि सब देवता, मनु, मुनीन्द्र, सरस्वती, लक्ष्मी तथा पार्वती आदि देवियाँ भी जिन्हें मस्तक झुकाती हैं, उन सर्वव्यापी परमात्माको मैं प्रणाम करता हूँ।

स्थूलास्तनूर्विदधतं त्रिगुणं विराजं

विश्वानि लोमविवरेषु महान्तमाद्यम् ।

सृष्ट्युन्मुखः स्वकलयापि ससर्ज सूक्ष्मं

नित्यं समेत्य हृदि यस्तमजं भजामि ॥ २ ॥

जो सृष्टिके लिये उन्मुख हो तीन गुणोंको स्वीकार करके ब्रह्मा, विष्णु और शिव नामवाले तीन दिव्य स्थूल शरीरोंको ग्रहण करते तथा विराट् पुरुषरूप हो अपने रोमकूपोंमें सम्पूर्ण व विश्वको धारण करते हैं, जिन्होंने अपनी कलाद्वारा भी सृष्टि रचना की है तथा जो सूक्ष्म (अन्तर्यामी आत्मा) – रूपसे सदा सबके हृदयमें विराजमान हैं, उन महान् आदिपुरुष अजन्मा परमेश्वरका मैं भजन करता हूँ ।

ध्यायन्ते ध्याननिष्ठाः सुरनरमनवो योगिनो योगरूढाः

सन्तः स्वप्नेऽपि सन्तं कतिकतिजनिभिर्यं न पश्यन्ति तप्त्वा ।

ध्याये स्वेच्छामयं तं त्रिगुणपरमहो निर्विकारं निरीहं

भक्तध्यानैकहेतोर्निरुपमरुचिरश्यामरूपं दधानम् ॥ ३ ॥

DOWNLOAD PDF: ब्रह्मांड पुराण गीता प्रेस गोरखपुर

PDF NAMEBrahma Puran
LANGUAGEHINDI
PUBLISHERGITA PRESS GORAKHPUR
PDF SIZE1.8 GB
PAGE814
CATEGORYHINDUISM BOOK
DOWNLOADYES LINK ✅
CREDITGORAKHPUR HINDI
GITA PRESS GORAKHPUR Brahma Puran
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