आसान हज पीडीऍफ़ डाउनलोड Hajj Guide Book in Hindi PDF hajj aur umrah ke masail pdf hajj aur umrah ka tarika in HINDI PDF DOWNLOAD IN HINDI
हज व ज़ियारत के मुतअल्लिक उर्दू में अब बे गिन्ती किताबें शाये हो चुकी हैं, लेकिन इस आजिज़ की मुरत्तब की हुई किताब – आप हज कैसे करें ?
जो अब से लगभग 42 साल पहले लिखी गई थी अपनी इस खुसूसियत में आज भी मुमताज़ और सब से अलग है कि इसके पढ़ने से दिल में वह सोज़ व गुदाज़ और आशिकाना जज़बा भी पैदा होता है जो हज की रुह और जान है, और हज व ज़ियारत के मुतअल्लिक जरूरी मसायल और आदाब भी मालूम हो जाते हैं
और इसकी रहनुमाई में हज करने वाले को बिलकुल ऐसा मालूम होता है कि कोई राह व मंज़िल का जानने वाला और बाख़ुदा रहनुमा हाथ पकड़े मसनून तरीके पर हज करा रहा हो और हर मौके पर बताता चल रहा हो कि यहां यह करो और यहां यह. पढ़ो, यह कहो।
इस किताब “आप हज कैसे करें” की इशाअत के बाद खुद भी महसूस किया और दूसरों ने भी बताया कि बहुत से भाइयों के लिये एक ऐसी किताब की भी ज़रूरत है जो इसी ढंग पर लिखी जाय लेकिन वह इससे छोटी हो
हज और उमरा
एहराम बांधने का तरीका मालूम करने से पहले आप यह बात समझ लीजिये कि ख़ास मक्का मुअज़्ज़मा पहुंचने के बाद जो इबादत अदा की जाती है वह एक तो हज है और इसके अलावा एक उमरा है उसको यूँ समझिये कि यह गोया छोटे किस्म का एक हज है, हज तो नमाज़, ज़कात और रमज़ान के रोजों की तरह इसलाम के फ़रायज़ और बुनयादी अरकान में से है, मगर उमरा फर्ज़ नहीं है बल्कि सिर्फ सुन्नत है।
इसी के साथ अब आप यह भी समझ लीजिये कि जो लोग हज को जाते हैं अगर उनका इरादा यह हो कि वह मक्का मुअज़्ज़मा पहूंच कर हज से पहले कोई उमरा न करेंगे, बल्कि हज ही करेंगे तो हज की इस सूरत को “इफ़ाद” कहते हैं, और अगर उनका इरादा यह हो कि जाकर उमरा करेंगे, और फिर हज अदा करेंगे तो उसकी दो सूरतें हैं।
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- एक यह कि हज और उमरा दोनों के लिये एक ही एहराम बांधा जाय
- और एक ही एहराम से दोनों को अदा करने की नियत की जाय तो इसको “किरान” कहते है और
- अगर ऐसा किया जाय कि पहला एहराम सिर्फ उमरा के लिये बांधा जाय
- और वहाँ पहुंच कर उमरा अदा करके वह एहराम ख़त्म कर दिया जाय और
- फिर हज के लिये मक्का मुअज़्ज़मा ही में दोबारा एहराम बांधा जाय
- और उससे हज अदा किया जाय तो हज की इस सूरत को “तमत्तो” कहते हैं।
- अहनाफ (इमाम अबू हनीफ़ा के मानने वालों) के नज़दीक अगरचे अफ़ज़ल (सब से बेहतर) क्रिरान की सूरत है
- लेकिन अकसर लोगों के लिये वह मुश्किल है क्योंकि उसमें मीकात पर जो एहराम बांध जाता है
- वह हज से फारिग होने तक रहता है
- और इतने दिनों तक एहराम की पाबंदियों का निभाना आम, लोगों के लिये ही
- नहीं बल्कि बहुत से ख़ास लोगों के लिये भी मुश्किल होता है कि
- न जानने की वजह से या भूल-चूक से ऐसी बातें और ऐसी चीजें हो जाती हैं जो एहराम की हालत में नहीं होनी चाहिये
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- और उनकी वजह से खराबी पैदा हो जाती है
- (और इफाद में भी यही मुश्किल है)
- इस लिये अकसर लोगों के लिए यही मुनासिब है कि
- वह तमत्तो वाली शक्ल इख़्तयार करें,
- आपको भी मेरा मशवरा यही है। जब यह बात आपने समझ ली और जान ली तो अब सुनिये:-
- आप जब एहराम बांधने का इरादा करें तो जैसा कि ऊपर
- अभी मैंने बतलाया कि आप नहा धोकर और मैल कुचैल
- और हर किस्म की गन्दगी से जिस्म को पाक साफ करके एहराम की एक चादर बांध लें और एक ओढ़ लें ।