गीतावली गीता प्रेस गोरखपुर PDF Geetawali Geeta Press Hindi

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हिन्दू धर्म की धार्मिक पुस्तक पीडीऍफ़ फ्री में गीतावली डाउनलोड करें डाउनलोड करने से पहले पुस्तक के कुछ अंश हिंदी में लिखा हुआ पढ़े

गीतावली गीता प्रेस गोरखपुर

  • गीतावली बालकाण्ड बधाई राग आसावरी [१]
  • आजु सुदिन सुभ घरी सुहाई ।
  • रूप-सील-गुन-धाम राम नृप-भवन प्रगट भए आई ।। १ ॥
  • अति पुनीत मधुमास, लगन-ग्रह-बार जोग-समुदाई।
  • हरषवन्त चर-अचर, भूमिसुर-तनरुह पुलक जनाई ॥ २ ॥
  • बरषहि बिबुध-निकर कुसुमावलि, नभ दुंदुभी बजाई।
  • कौसल्यादि मातु मन हरषित, यह सुख बरनि न जाई ॥ ३ ॥
  • सुनि दसरथ सुत-जनम लिये सब गुरुजन बिप्र बोलाई।
  • वेद-बिहित करि क्रिया परम सुचि, आनँद उर न समाई ॥ ४ ॥
  • सदन वेद-धुनि करत मधुर मुनि, बहु बिधि बाज बधाई।
  • पुरबासिन्ह प्रिय-नाथ- हेतु. निज-निज संपदा लुटाई ॥ ५ ॥
  • मनि-तोरन, बहु केतुपताकनि, पुरी रुचिर करि छाई ।
  • मागध-सूत द्वार बंदीजन जहँ तहँ करत बड़ाई ।। ६ ।।
  • सहज सिंगार किये बनिता चलीं मंगल बिपुल बनाई।
  • गावहिं देहि असीस मुदित, चिर जिवौ तनय सुखदाई ॥ ७ ॥
  • बीथिन्ह कुंकुम-कीच, अरगजा अगर अबीर उड़ाई।
  • नाचहिं पुर-नर-नारि प्रेम भरि देहदसा बिसराई ॥ ८ ॥
  • अमित धेनु-गज-तुरंग-बसन-मनि, जातरूप अधिकाई ।
  • देत भूप अनुरूप जाहि जोड़, सकल सिद्धि गृह आई ।। १ ।।
  • सुखी भए सुर-संत-भूमिसुर, खलगन-मन मलिनाई।
  • सबै सुमन बिकसत रबि निकसत, कुमुद-बिपिन बिलखाई ॥ १० ॥
  • जो सुखसिंधु सकृत-सीकर तें सिव-बिरंचि प्रभुताई।
  • सोइ सुख अवध उमँगि रह्यो दस दिसि, कौन जतन कहाँ गाई ।। ११ ।।
  • जे रघुबीर-चरन-चिंतक, तिन्हकी गति प्रगट दिखाई।
  • अबिरल अमल अनूप भगति दृढ़ तुलसिदास तब पाई ।। १२ ।।

गीतावली गीता प्रेस गोरखपुर PDF

हिंदी पुस्तक गीतावली गीता प्रेस गोरखपुर PDF (Geetawali Geeta Press Hindi) से कुछ अंश –

आज बड़ा मङ्गलमय दिन है, आजकी शुभ घड़ी बड़ी सुहावनी है आज सौन्दर्य, शील और गुणके आगार भगवान् राम महाराज दशरथके भवनमें प्रकट हुए हैं ॥ १ ॥

अति पवित्र चैत्र मास है तथा लग्न, ग्रह, वार और योग-इन सबका समुदाय भी परम पावन है। चराचर प्राणी बड़े हर्षयुक्त हैं तथा ब्राह्मणोंके शरीरोंमें रोमाञ्च हो रहा है ॥ २ ॥

देववृन्द आकाशमें दुन्दुभी बजाते हुए पुष्पोंकी वर्षा कर रहे हैं तथा कौसल्या आदि माताओंका मन बड़ा ही हर्षित हो रहा है। हमसे इस सुखका वर्णन नहीं हो पाता ॥ ३ ॥

दशरथजीने पुत्रका जन्म होना सुनकर समस्त गुरुजन और विप्रवृन्दको बुला लिया है और बड़ी पवित्रतासे सम्पूर्ण वेदविहित क्रियाएँ की हैं। इस समय उनके हृदयमें आनन्द अँटता नहीं है ॥ ४ ॥

महलमें मुनि सुमधुर वेदध्वनि कर रहे हैं तथा तरह-तरहकी बधाइयाँ बज रही हैं। पुरवासियोंने भी अपने परम प्रिय नाथके लिये अपनी-अपनी सम्पत्ति लुटा दी है ॥ ५ ॥

मणियोंका तोरण और बहुत-सी ध्वजा-पताकाओंसे पुरीको बड़ी सुन्दरवासे छा दिया है। द्वारपर जहाँ-तहाँ मागध, सूत और वन्दीजन वंड़ाई कर रहे हैं॥ ६ ॥

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PDF NAMEGeetawali
LANGAUGEHINDI
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PAGE371
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CATEGORYGITA PRESS
PUBLIHS30/04/2023
गीतावली गीता प्रेस गोरखपुर PDF Geetawali Geeta Press Hindi
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